पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०३

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८४ 0 भर्तारं दीप्तयशसं पुरुषं प्रत्यपद्यत । स वै स्वयंभुवः पूर्वं पुरुषो मनुरुच्यते ११ तस्यैकसप्ततियुगं मन्वन्तरमिहोच्यते । लध्वा तु पुरुषः पत्नीं शतरूपमयोनिजाम्स् १२ तया स रमते सार्ध तस्मात्सा रतिरुच्यते । प्रथमः संप्रयोगः स कल्पादौ समवर्तत १३ विराजमसृजद्वह्मा सोऽभवत्पुरुषो विराट् । स सत्रासासरूपातु वैराजस्तु मनुः स्मृतः १४ स वैराजः प्रजासर्गः स सगं पुरुषो मनुः । बैराजात्पुरुषाद्वीराच्छतरूपा व्यजायत १५ प्रियव्रतोत्तानपादौ पुत्रौ पुत्रवतां वरौ । फन्ये द्वे च महाभागे याभ्यां जाताः प्रजास्त्विमः ॥१६ देवी नाम्ना तथाऽऽकू तिः प्रसूतिश्च व ते शुभे। स्वायंभुवः प्रसूति तु दक्षाय व्यसृजत्प्रभुः ॥१७ (+प्राणो दक्षस्तु विज्ञेयः सकल्प मनुरुच्यते । रुचेः प्रजापतेव व आकृति प्रत्यपादयत् ॥१८ आकृत्यां मिथुनं जज्ञे मानसस्य रुचेः शुभम् )। यज्ञश्च दक्षिणा चैव यमकौ संबभूवतुः १६ यज्ञस्य दक्षिणायां च पुत्रा द्वादश जज्ञिरे । यामा इति समाख्याता देवाः स्वायंभुवेऽन्तरे ।।२० यमस्य पुत्रा यज्ञस्य तस्माद्यास्तु ते स्मृतः । अजिता व शुकाश्च गणौ द्वौ ब्रह्मणः स्मृतौ ॥२१ यामः पूर्वं परिक्रान्ता यतः संज्ञा दिवौकसः। स्वायंभुवसुतायां तु प्रसूत्यां लोकमातरः २२ तस्य कन्याश्चतुविंशद्दक्षस्त्वनयत्प्रभुः । सर्वास्ताश्च महाभागाः सर्वाः कमललोचनाः २३ परम घोर तपस्या की ।९-१०। उसने दीप्त यश वाले स्वायम्भुव मनु को पति के रूप में वरण किया । इकहत्तर युग का मन्वन्तर माना गया है । स्वयम्भु मनु उस अयोनिजा शतरूपा को पत्नी के रूप में प्राप्त कर उसके साथ रमण करने लगे । इसी से उसका एक नाम रति भी पड़ा । कल्प के आदि में वही प्रथम नर नारी संयोग हुआ । ब्रह्मा ने विराट् का सृजन किया है । विराट् से ही वैराज मनु की उत्पत्ति है। वीर सम्राट् वैराज मनु ने शतरूपा के गर्भ से प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो श्रेष्ठ पुत्रों और आकृति तथा प्रसूति नाम्नी दो शुभ पुत्रियों को उत्पन्न किया। उन्ही दो पुत्रियों से यह सारी प्रजा उत्पन्न हुई है । स्वायम्भुव मनु ने प्रसूति को दक्ष के हाथ मे सौंप दिया । जो प्राण है, वही दक्ष है और संकल्प को मनु कहा जाता है । मनु ने रुचि प्रजापति को आकूति नाम की कन्या दे दी ।११-१८। ब्रह्मा के मानस पुत्र रुचि को आकूति के गर्भ से यज्ञ और दक्षिण नामक मिथुन सन्तान उत्पन्न हुये ।१९। उस स्वायम्भुव मन्वन्तर में दक्षिण में बारह पुत्र हुये । उनका नाम याम पड़ा ।२०। यज्ञ का ही दूसरा नाम यम था । उनके पुत्र होने के कारण वे याम कहलाये । वे अजत और चूक नामक दो भागों मे विभक्त है, किन्तु देवों के बीच वे याम नाम से ही प्रसिद्ध हैं । दक्ष प्रभु ने स्वायम्भुव मनु की पुत्री प्रसूति के गर्भ से संसार की माता +धनुदिश्चदंतर्गतग्रन्थो ग. पुस्तके नास्ति ।