पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०३०

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१०० ॥१६० ॥१६१ + एकशततमोऽध्यायः ॥१६२ काण्डकर्ता कुलालच निष्कहर्ता चिकित्सकः | आरामेष्वग्निदाता यः पतते स विशंसने असत्प्रतिग्रही यश्च तथैवायाज्ययाजकः । नज्ञत्रजवते यश्च नरो गच्छत्यधोमुखम् क्षोरं सुरां च मांसं च लाक्षां गन्धं रसं तिलान् । एवमादीनि विकोणन्धोरे पूयवहे पतेत् यः कुक्कुटानि बध्नाति मार्जारान्सूकरांच तान् । पक्षिणश्व मृगांश्छागान्सोऽप्येनं नरकं व्रजेत् ॥१६३ अजाविको माहिषकस्तथा चक्नध्वजी च यः । रङ्गोपजीविको विप्रः शाकुनिग्रमयाचकः अगारदाही गरदः कुण्डाशी सोमविक्रयी | सुरापो मांसभक्षश्च तथा च पशुघातकः विशस्ता महिषादीनां मृगहन्ता तथैव च । पर्वकारश्च सूची च यश्च स्यात्मित्रघातकः || रुधिरान्धे पतन्त्येते एवमाहुर्मनीषिणः ॥ १६४ ॥१६५ उपविष्टमेकपङ्क्त्यां विषमं भोजयन्ति ये | पतन्ति तरके घोरे विड्भुजे नात्र संशयः ॥१६६ ॥१६७ उन्हें देकर अकेला भोजन करता है वह अतिशय दुर्गन्धमय लालाभक्ष नामक घोर नरक में निपतित होता है | जो पापात्मा काण्डकर्ता होते हैं, शराब बनाते हैं, दूसरों का निष्क चुराते हैं, अच्छी औषधि जानते हुए भो द्वेषवश या लालच से बुरो दवा करते है, किसी के बांग अथवा उपवनादि में आग लगाते है वे विशंसन नामक घोर नरक में गिरते है । जो असत् कर्मों द्वारा धन उपार्जित करता है अथवा नीच 'प्रवृत्तिवालों का दान ग्रहण करता है, जिन्हें यज्ञादि का अधिकार नहीं है, उनसे यज्ञादि का अनुष्ठान करवाता है, नक्षत्रों से अपनी जीविका चलाता है, वह पापात्मा अधोमुख नामक नरक में जाता है । दूध, मदिरा, मांस, लाक्षा, सुगन्धित पदार्थ तेल इत्रादि, रस एवं तिल आदि वस्तुओं का विक्रेता घोर 'पंथवह नामक नरक में गिरता है |१५९-१९६२। जो मुर्गे को मारता है, बिल्ली और सूअर का बघ करता है, पक्षियों, मृगों, एवं बकरों को मारता है, वह पापात्मा प्राणी भी उसी पूयवह नामक नरक में जाता है । जो ब्राह्मण होकर भी बकरी, बकरे, भेड़, महिष आदि का पालन करता है, चक्र एवं ध्वजा ग्रहण करता है, रंगों की विक्री से जीविका चलाता है, पक्षी मारता है, ग्रामों में इधर उधर झूठमूठ का यज्ञ करता फिरता है, किसी के घर में भाग लगाता है, विष देता है, कुण्डों के ( संकरवर्णवालों के ) घर भोजन करता है, सौमरस विक्रय करता है, मदिरा पोता है, मांस भक्षण करता है, पशुओं की हिंसा करता है, महिषादि का बलिदान करता है, मृगादि वन्य जन्तुओं का शिकार करता है, गाँठें बनाता है, सूचीकर्म ( सिलाई ) करता है, मित्रों की हत्या करता है, वह रुधिरान्ध नामक घोर नरक मे गिरता है- ऐसा मनीषियों का कथन है । १६३-१६६ | जो एक ही पंक्ति में बैठाये गये व्यक्तियों को भोजन कराने में भेद करते हैं, वे पापात्मा के फा०-१२७