पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/१०३५

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१०१४ वायुपुराणम् सहस्त्रेणैवभागेन धार्मिकेभ्यो दिवं गताः । यः सहस्त्रतमो भागो धार्मिकाणां भवेद्दिवि || संमितास्तेन भागेन भोक्षिणस्तावदेव हि ॥२०४ स्वर्गोपपादकैस्तुल्या यातनास्थानवासिनः । पतिताः पापकर्माणो दुरात्मानो त्रियन्ति ये ॥ रौरवे तामसे होते शीतोष्णं प्राप्नुवन्ति ते ।।२०५ ।।२०६ वेदनाकटुकास्तब्धा यातनास्थानमागताः : उष्णस्तु रौरवो ज्ञेयस्तेजो घोररसात्मकः ततो धनात्मकश्चापि शीतात्मा सततं तपः । एवं सुदुर्लभाः सन्तः स्वर्गे वा धार्मिका नराः एषा संख्या कृता संख्या (?) ईश्वरेण स्वयंभुवा | गणना विनिवृतैषा संख्या ब्राह्मी च मानुषी ॥२०८ ॥२०७ ऋषय ऊचुः महो जनस्तपः सत्यं भूतो भाग्यो भवस्तथा । उक्ता होते त्वया लोका लोकानामन्तरेण च ॥ लोकान्तरं च यादृग्वै तन्नो ब्रूहि यथातथम् तेषां तद्वचनं श्रुत्वा ऋषीणामूर्ध्वरेतसाम् । स वायुदृ ष्टतत्त्वार्थं इदं तत्त्वमुवाच ह ॥२०६ ॥२१० धार्मिक होते हैं। स्वर्ग इन धर्मात्मा महापुरुषों की संख्या का जितना सहस्रतम भाग होता है उतनी ही मोक्ष प्राप्त करने वालों की संख्या होती है |२००-२०४७ वे स्वर्गोपपदाकों के समान ही होते है। जो पाप कर्म में निरत रहने वाले पतित दुरात्मा मृत्यु के वश में होकर उन यातना स्थानों – नरकों में निवास करते हैं, वे महान् अन्धकारपूर्ण उन परम भयानक रोरवादि नरकों में परमशीत एवं उत्ताप का अनुभव करते हैं । उन यातना स्थानों में पहुँचकर वेदना को असह्य कटुता को वे स्तव्य होकर सहन करते हैं, उस रोव नरक को परम उष्ण तेजोमय (उत्तापक) एवं घोर रसात्मक जानना चाहिये । उससे भी परम भयानक सर्वदा परम शीतात्म तप (तम ) नामक नरक है । सात्त्विक गुण सम्पन्न धार्मिक नर परम दुर्लभ होते हैं, जो स्वर्ग लोक मे निवास करते है । स्वयम्भू परमैश्वयंशाली भगवान् ब्रह्मा ने, उपर्युक्त आनुपातिक संख्या निश्चित की है। उस विषय में मनुष्यों को निश्चित की गई संख्या को निवृत्ति है, अर्थात् मानव कभी इस विषय की संख्या आदि निश्चित नही कर सकता, केवल ब्राह्मी संख्या ही ऐसे स्थलों पर प्रमाणभूत होती है ।२०५ २०८॥ ऋऋषि वृन्द बोले- भगवन् वायुदेव ! आप ने मह, जन, तप, सत्य, भूत, (भू) भाव्य ( भुव ) एव भव (स्वर) - ) - इन सातो लोकों की स्थिति एक के बाद एक वतलाई है। उन लोकों में एक को अपेक्षा दूसरे में क्या अन्तर है— इसे हम यथार्थत सुनना चाहते है। उन ऊध्वंरेता ऋषियों को इस बात को सुनकर तत्त्वविद् वायु ने तथ्यपूर्ण अपनी बातों को कहना प्रारम्भ किया |२०६-२१०।