पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/११३१

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वायुपुराणम् देहेन्द्रियमनोबुद्धिप्राणाहंफारवजितम् । जाग्रत्स्वप्नविनिर्मुक्तं नमाम्यादिगदाधरम् नित्यानित्यविनिर्मुक्तं सत्यमानन्दमव्ययम् | तुरीयं ज्योतिरात्मानं नमाम्यादिगदाधरम् सनत्कुमार उवाच ॥५१ ॥ ५२ एवं स्तुतो महेशेन प्रोतो ह्यादिगदाधरः | स्थितो देवः शिलायां स ब्रह्मा द्यैर्देवतः सह संस्थितं सुण्डपृष्ठाद्रौ देवमादिगदाधरम् | स्तुवन्ति पूजयन्तीह ब्रह्मलोकं प्रयान्तु ते धर्मार्थी प्राप्नुयाद्धर्ममर्यार्थी चार्थमाप्नुयात् । कामानवाप्नुयात्फामी मोक्षार्थी मोक्षमाप्नुयात् ॥५३ + बन्ध्या च लभते पुत्रं वेदवेदाङ्गपारगम् । राजा विजयमाप्नोति शूद्रश्च सुखमाप्नुयात् पुत्रार्थी लभते पुत्रानभ्यर्च्याऽऽदिगदाधरम् | मनसा प्रार्थितं सर्वं पूजाद्यैः नुयाद्धरे: ॥५४ ॥५५ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते गयामाहात्म्यं नाम नवाधिकशततमोऽध्यायः ॥ १०६|| १११० ॥४ ॥५० विर्वाजत, एवं जागरण, तथा स्वप्न से विहीन है उस आदि गदाधर देव को हम नमस्कार करते हैं । जो नित्य एवं अनित्य के पचड़ों से रहित है, सत्स्वरूप मानन्दस्वरूप एवं भव्यय है, तुरीय आत्मा एवं ज्योति कहा जाता है उस आदि गदाधर को हम नमस्कार करते हैं ॥४१-५०॥ सनत्कुमार बोले- नारद जी ! महेश्वर द्वारा इस प्रकार स्तुति किये जाने के उपरान्त भगवान् आदि गदाधर ब्रह्मा प्रभृति देवगणों के साथ उस शिला के ऊपर स्थित हुए । मुण्डपृष्ठ गिरि पर अवस्थित आदि गदाघर देव को जो लोग स्तुति एवं पूजा करते हैं, वे ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं |५१-५२। धर्म का अभिलाषी धर्म प्राप्त करता है । अर्थ का अभिलापो अर्थ प्राप्त करता है, काम का अभिलापी काम प्राप्त करता है, मोक्ष का अभिलाषी मोक्ष को प्राप्ति करता है, वन्ध्या वेद वेदाङ्गपारगामी पुत्र प्राप्त करती है. राजा विजय की प्राप्त करता है, शूद्र सुख की प्राप्ति करता है | आदि गदाधर की विधिवत् पूजा कर पुत्र को चाहने वाला अनेक पुत्र प्राप्त करता है । भगवान् विष्णु की पूजा आदि से मनुष्य अपने सभी मानसिक अभिलाषाओं को प्राप्त करता है | ५३-५५१ श्री वायु महापुराण में गयामाहात्म्य नामक एक सो नवाँ अध्याय समाप्त ॥१०१।। + न विद्यतेऽयं श्लोकः ख. पुस्तके | गृहाच्चलितमात्रेण गयायां गमनं प्रति । स्वर्गारोहणसोपानं पितॄणां च पदे पदे ||१