पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२०६

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पञ्चविंशोऽध्यायः १८७ ६१ एवमस्त्विति वै दक्षः प्रत्यपद्यत भाषितम् । तैः सह स्रष्टुमारेभे प्रजाकामः प्रजापतिः । सर्गस्थिते ततः स्थाणौ ब्रह्मा सर्वमथासृजत् अथास्य सप्तमेऽतीते कल्पे वै संबभूवतुः। ऋभुः सनत्कुमारश्च तपोलोकनिवासिनौ । ततो महर्षीनन्यान्स मानसानसृजत्प्रभुः ६२ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते मधुकैटभोत्पत्तिविनाशवर्णनं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः ।।२५। . "आप ही श्रेष्ठ प्रजापति है । आपकी जय हो ! आपको ही आगे कर हम लोग प्रजा की सृष्टि करेंगे” । ८६-६० दक्ष ने भी ऐसा ही हो’’ कहकर उनके भाषण का अनुमोदन किया और उन लोगों के साथ मिलकर प्रजाभिलाषी प्रजापति ने सृष्टिरचना प्रारम्भ की। रुद्र देव को इस प्रकार सृष्टिकार्य में तत्पर होते देख कर ब्रह्मा भी सृष्टि करने लगे । सप्तम कल्प के अतीत हो जाने पर फिर तब तपोलोक निवासी ऋभु और सनत्कुमार उत्पन्न हुये। उसके बाद ब्रह्मा ने और भी ऋषि आदि मानस पुत्रों को उत्पन्न किया ६१-६२॥ श्रीवायुमहापुराणान्तर्गत मधुकैटभ की उत्पत्ति और विनाश नागक पचीसवाँ अध्याय समाप्त ॥२५॥