पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२५८

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एकत्रिंशोऽध्यायः २३६ अथैकत्रिंशोऽध्यायः देववंशवर्णनम् सूत उवाच इत्येषा समनुज्ञाता कथा पापप्रणाशिनी । दक्षमधिकृत्येह कथा शर्वादुपागता १ पितृवंशप्रसङ्गेन कथा हृषा प्रकीतिता । पितृणामानुपूर्येण देवान्वक्ष्याम्यतः परम्। ॥२ त्रेतायुगमुखे पूर्वमासन्स्वायंभुवेऽन्तरे। देवा यामा इति ख्याताः पूर्वं ये यज्ञसूनवः ३ अजिता ब्रह्मणः पुत्रा जिता जिदजिताश्च ये । पुत्राः स्वायंभुवस्यैते शुक्रनाम्ना तु मानसाः ॥४ तृप्तिमन्तो गणा ह्यते देवानां तु त्रयः स्मृताः । छन्दोगास्तु त्रयस्त्रिशत्सर्वं स्वायंभुवस्य ह ॥५ यदुर्ययातिद्वौ देवौ दीधयः स्रवसो मतिः । बिभासश्च क्रतुश्चैव प्रजातिवशतो द्युतिः ६ वायसो मङ्गलश्चैव यामा द्वादश कोfतताः । [*अभिमन्युरुग्रदृष्टिः समयोऽथ शुचिश्रवाः । कवलो विश्वरूपश्च सुपक्षो मधुपस्तथा ७ अध्याय ३१ देव-वंश वर्णन पूत जी बोले-यह पापनाशिनी कथा आप लोगो को अब ज्ञात हो गई । यह दक्ष से सम्बन्ध रखने वाली कथा महादेव से प्राप्त हुई है, जो पितरों के वंश-वर्णन के प्रसंग में कह दी गई है । पितृवंश वर्णन को ही तरह अब आगे हम देव वंश का वर्णन करते हैं ।१-२। पहले स्वायम्भुव मनु के अधिकार काल में त्रेता युग के आदि मे याम नाम के विख्यात देव थे, जो पहले यज्ञतनय थे । उनमें अजित ब्रह्मा के पुत्र थे और जित, जित् तथा अजित स्वायम्भुव के पुत्र थे। ये शुक्र नामक मानस पुत्र कहलाते थे ।३-४ देवों के तीन गण कहे गये हैं, जिनमे ये तृप्तिमान् गण कहलाते हैं । स्वायम्भुव मनु के तेतीस पुत्र छन्दोग कहलाते है ।५।। , ययाति नामक दो देव एवं दीधय स्रवस, मति, विभास, ऋतु, प्रजापति, विशत, धृति, वायस और मङ्गल नामक वारह देव याम कहलाते है ।६-६६। अभिमन्यु, उग्रदृष्टि, समय, शुचिश्रवा, केवल विश्वरूप,

  • धनुश्चिह्न्तर्गतग्रन्थः ख. ग घ. पुस्तकेषु नास्ति ।