पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/२६१

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२४२ ऋतुरग्निस्तु यः प्रोक्तः स तु संवत्सरो मतः । आदित्येयस्त्यऽस सरः कालाग्निः परिवत्सरः ।।२e शुक्लकृष्ण गतिश्वापि अपां सारमयः खगः । स इदावत्सरः सोमः पुराणे निश्चयो मतः ३० यश्लायं तपते लोकांस्तनुभिः सप्तसप्तभिः । आशु कर्ता च लोक्तस्य स वायुरिति वत्सरः ।।३१ अहंकाराद्दरुद्रः सभूतो ब्रह्मणस्त्रयः । स रुद्रो वत्सरस्तेषां विजज्ञे नीललोहितः । तेषां हि तत्वं वक्ष्यसि कीर्यमानं निबोधत ३२ अङ्गप्रत्यङ्गसंयोगात्कालात्मप्रपितामहः। ऋक्सामयजुषां योनिः पवनां पतिरीश्वरः ३३ सोऽग्निर्यजुश्च सोमश्च स भूतः स प्रजापतिः । शोक्तः संवत्सरश्चेति सूर्यो योनिर्मनषिभिः ॥३४ यस्मात्कालविभागानां सापर्वयनयोरपि । ग्रहनक्षत्रशीतोष्णवर्षीयःकर्मणां तथा ।। योजितः अबिभागानां दिवसानां च भास्करः ।।३५ वैकारिकः प्रसन्नात्मा ब्रह्मपुत्रः प्रजापतिः। एकेनैकोऽथ दिवसो मासोऽथर्तुः पितामहः ३६ आदित्यः सविता भानुर्जीवनो ब्रह्मसत्कृतः । प्रभवाव्ययश्चैव भूतानां तेन भास्करः }३७ तराभिमानी विज्ञेयस्तृतीयः परिवत्सरः । सोमः सवौषधिपतिर्यस्मात्स प्रपितामहः ॥३८ आजीवः सर्वभूतानां योगक्षेमकृदीश्वरः। अवेक्षमाणः सततं विभत जगदंशुभिः ३६ अग्नि को मैंने पहले कहा है, वही संवत्सर है और यह परिवत्सर काल-अग्नि स्वरूप है जो सूर्य से उत्पन्न तत्त्व है । पुरण मे यह निश्चय किया गया है कि, इद्वत्सर सोम है जो आकाश में चलने वाला, जलो का सार भूत और सनत शुक्ल-कृष्ण गति वाला है । जो उनचास शरीरो से लो ओों को संतप्त करते हैं और अनुप्राणित करते है वही वायु वत्सर हैं । अहंकारवश रोदन करने वाले रुद्र ब्रह्मा द्वारा तीन भागों में विभक्त हुए, वही नीललोहित रुद्र रुद्र के वसर कहे गये है। उनके तत्त्व । को भी मैं कहता हूँ सुनिये ।२९-३२। कालामा प्रपितामह अङ्ग प्रत्यङ्ग के सयोग से ऋक्, साम और यजुः के उस्पत्ति-स्थान एवं पाँचो कालों के स्वामी है । वे ही अग्नि यजुःसोम, भूत और प्रजापति हैं । विद्वानो ने सूर्य को ही अगित और संवत्सर कहा है । इन्हीं सूर्य से कालों का विभाग अर्थात् मास, ऋतु, अयन, ग्रह, नक्षत्र, शीत, ग्रीष्म, वर्षा, आयु, कर्म तथा दिवसों का विभाग होता है ।३३-३५। विकारावस्था मे ये ही प्रसन्नस्मा ब्रह्मपुत्र प्रजापति एक-एक कर दिवस, माम और ऋतु के प्रवर्तक हैं और ये ही पितामह है । ये ही आदित्य, सविता, भानु, जीवन और ब्रह्मसत्कृत कहे जाते है, भूतों के उत्पादक और अविनाशी होने के कारण ये भास्कर है ।३६३७। तृतीय परिवत्सर ताराभि मानी है. जो सोम और निखिल ओषधियों का पति है, इसलिये यह भी प्रपितामह है । ये सभी जीवों के जीवन और योग-क्षेम करने वाले हैं । ये सदा जागरूक रहते हुए फिरणों द्वारा जगत् का पोषण करते हैं । तिथि