पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/३२१

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३०२ ६८ ६६ ७० ७१ ७२ कूटे तु मध्यमे तस्य सिद्धसंघनिषेविते । रम्ये देषचरिते रत्नधातुविभूषिते पद्मोत्पलवनैः फुल्लैः सौगन्धिकवनैस्तथा । तथा कुमुदखण्डैश्च विकचैरुपशोभते विहङ्गसंघसंघुष्टं नानासत्त्वनिषेवितम् । हंसकारण्डवाकीर्णा मत्तषट्पदसेवितम् नानासत्वगणाकीर्णं विहङ्गैरुपशोभितम् । चारुतीर्थसुसंबाधं त्रिशद्योजनमण्डलम् सिद्धेरुपस्पृष्टजलं जलदोषविवर्जितम् । तत्राऽऽनन्दजलं नाम महापुण्यजलं सरः तत्र नागपतिश्चण्डश्चण्डो नाम दुरासदः। शतशीर्षो महाभागो विष्णुचक्राङ्गचिह्नितः ॥ इत्येवमष्टौ विज्ञेया विचित्रा देवपर्वतः पुरैरायतनैः पुण्यैः पुण्योदैश्च सरोवरैः। सुवर्णपर्नतैनैकैस्तथा रजतपर्वतैः नानारत्नप्रभासैश्च नैकैश्च मणिपर्वतैः। हरितालपर्वतैर्लोकैस्तथा हिङ्गुलकावनैः शुद्धेर्मनः शिलाजालैर्भास्वरैरुणप्रभैः। नानाधातुविचित्रैश्श्व मणिपर्वतैः पूर्णा वसुमती सर्वा गिरिभिर्लोकविस्तरैः। नदीकन्दरशैलाढ्यं रनेकैश्चित्रसानुभिः (*तेषु शैलसहत्रषु नानावर्णेषु नित्यशः । दैत्यदानवगन्धर्वयक्षाणां च महालयैः। ) ॥७३ ७४ ७५ ७६ II७७ ७८ मन्दिर है । उस पर्वत के रमणीय रन-धातुओं से विभूषित मध्यमशिखर पर सिद्ध-संघ देवीषि सदा निवास करते है ।६६-६८। वहां अत्यन्त पवित्र जलवाला आनन्द जल नामक एक सरोवर है । उसका जल सदा निमंल रहता है, सिद्धगण उसमें स्नान करते है, विविध भाति के जीवों से वह भरा हुआ है । वह पक्षियो के समूह से भरा हुआ और अति शोभा शाली है । हंस, कारण्ड और मतवाले भ्रमर वहाँ विचरण करते हैं । वह विकसित पद्म, उपल, सौगन्धित और कुमुद से शोभित है और उसमें वढ़िया घाट बँधे हुये है । वह लम्बाई चौड़ाई में तीस योजन का है ।६६७२। वहाँ चण्ड नामक एक अत्यन्त दुर्धर्षे और भयंकर नागपति निवास करते हैं , वे महाभाग सो सिरवाले हैं और उन सिरों पर विष्णुचक्र चिह्नित हैं । इन्ही आठो को विचित्र देवपर्वत समझना चाहिये (७३। अनेकानेक पवित्रपुर, मन्दिर, पवित्र जलवाले सरोवर, अनेक सोने-चाँदी के पर्वत, नाना रत्नप्रभा मण्डित अगणित मणिपर्वत, बहुत से हरिताल झील, असंख्य हिगुल काचन, अरुणभ विशुद्ध भास्वर मनःशिलासमूहनानाधातुरंजित अनगिनत मणिपर्वत एवं नदी, कन्दरा, शिलखण्ड ओर विचित्र शिखरो से युक्त अनेक पर्वत से यहाँ की सम्पूर्ण भूमि परिपूर्ण है |७४-७७| उन नाना वर्ण के हजारों पर्वतों पर देय, दानव, गन्धर्व और यक्षों के भव्य भवन बने हुये है । इन झीलों पर दैत्य, राक्षस, साडू

  • धनुश्चिह्न्तगतग्रन्थ. क. ग ड. पुस्तकेषु नास्ति ।