पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४४१

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४२२ IU ६२ ।।६३ ।।६४ ६५ ।।६६ ६७ शृणुध्वं देवताः सर्वे ऋषयश्च तपोधनाः । तत्तदग्रे समुत्पन्नं मथ्यमाने महोदधे विषं कालानलप्रख्यं कालकूटेति विश्रुतम् । येन प्रोक्षतमात्रेण कृतः कृठणो जनार्दनः तस्य विष्णुरहं चापि सर्वे ते सुरपुङ्गवाः । न शक्नुवन्ति वै सोढं वेगमन्ये तु शंकरात् इत्युक्त्वा पद्मगर्भाभः पयोनिरयोनिजः। ततः स्तोतुं समारब्धो ब्रह्मा लोकपितामहः नमस्तुभ्यं विरूपाक्ष नमस्तेऽनेकचक्षुषे । नमः पिनाकहस्ताय वस्रहस्ताय वै नमः नमस्त्रैलोक्यनाथाय भूतानां पतये नमः । नमः सुरारिसंहनें तापसाय त्रिचक्षुषे ब्रह्मणे चैव रुद्राय विष्णवे चैव ते नमः । सांख्याय चैव योगाय भूतग्रामाय वै नमः मन्मथाङ्गविनाशाय कालकालाय वै नमः । रुद्राय च सुरेशाय देवदेवाय ते नमः कर्षादने करालाय शंकराय कपालिने । विरूपायैकरूपाय शिवाय वरदाय च त्रिपुरघ्नाय वन्द्याय मातृणां पतये नमः । बुद्धाय चैव शुद्धाय सुक्ताय केवलाय च नमः कमलहस्ताय दिग्वासाय शिखण्डिने । लोकत्रयविधात्रे च रुद्राय वरुणाय च अग्राय चैव चोग्राय विप्रायानेकचक्षुषे । रजसे चैव सत्त्वाय तमसेऽव्यक्तयोनये ६८ ६६ ७० ७१ ७२ ७३ जाने पर आपके आगे कालकूट विष निकला और जिसने ि निकलते ही ही जो कालाग्नि के समान है विष्णु को काला वना को आप देवगण दिया है, उस विषके वेग हम, विष्णु या नही सह सकते हैं । हाँ, उसके वेण को शहर भगवान् सकते ।६४। सहन कर है ६१-यह कहकर पद्मगर्भ को तरह आभावाले पद्मयो होने पर भी अयोनिलोकपितामह ब्रह्मा ने स्तुति करना किया हे वाले , प्रारम्भ । अनेक नेत्र विरूपाक्षहे पिनाक और वत्र धारण करने वाले ! आपको नमस्कार है ।६५-६६हे त्रैलोक्यनाथ ! हे भूतपति ! हे । त्रिनयन आप तपस्वी और देवशत्रुओं के विनाशकर्ता है, आपको नमस्कार है। आप ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र सांख्ययोग और -भूतग्राम ही प्रतिष्ठित हुआ हैआपको नलस्कार है। आप आपसे . कामदेव के शरीर का दहन करने वाले. कालकालरुद्र, सुरेश और देवदेव . आपको नमस्कार है। आप कपद, कपाली, कराल, शङ्कर, विरूप, एकरूप, शिव और वरद है, आपको नमस्कार है ।६७७ वन्दनीय, माताओं पति, बुद्ध, शुद्धमुक्त और आपके अतिरिक्त कोई दूसरा है, आपको के नहीं नमस्कार है । आप कमल धारण करने वाले, नग्न, शिखण्डी, तीनों लोकों के , चन्द्रमा और हैं विधातावरुण , आपको नमस्कार है। आप अग्र उग्र, विप्र अनेक चक्षु, सत्त्व, रज, और अव्यक्त योनि है, तम आपको नमस्कार आप त्रिपुरारि,

  • नास्त्ययं लोको घ पुस्तके ।