पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/४५२

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पञ्चपञ्चशोऽध्याय ४३३ ४७ १४८ ४९ नमोऽस्तु ते देव हिरण्यरूप नमोऽस्तु ते देव हिरण्यनाभ । नमोऽस्तु ते नेत्रसहस्रचित्र नमोऽस्तु ते देव हिरण्यरेतः नमोऽस्तु ते देव हिरण्यवर्ण नमोऽस्तु ते देव हिरण्यगर्भ । नमोऽस्तु ते देव हिरण्यवीर नमोऽस्तु ते देव हिरण्यदायिने नमोऽस्तु ते देव हिरण्यमालिने नमोऽस्तु ते देव हिरण्यवाहिने । नमोऽस्तु ते देव हिरण्यवर्मने नमोऽस्तु ते भैरवनादनादिने नमोऽस्तु ते भैरववेगवेग नमोऽस्तु ते शंकर नीलकण्ठ। नमोऽस्तु ते दिव्यसहस्रबाहो नमोऽस्तु ते नर्तनवादनप्रिय एवं संस्तूयमानस्तु व्यक्तो भूत्वा महामतिः। भाति देवो महायोगी सूर्यकोटिसमप्रभः अभिभाष्यस्तदा महादेवो महेश्वरः। वक्त्रकोटिसहस्र ण ग्रसमान इवाम्बरम् हृcट। एकग्रीवस्त्वेकजटो नानाभूषणभूषितः । नानारत्नावचित्राङ्गणे नानामाल्यानुलेपनः पिनाकपाणिर्भगवान्वृषभासनश्शूलधृक् । दण्डकृष्णाजिनधरः कपाली घोररूपधृक्। ।।५० ५१ ५२ ५३ १५४ है । तुम रुद्र हो, पिनाकपाणि हो, सायक तथा चक्र धारण करने वाले हो, तुम्हे हमारा नमस्कार है । हे भस्म से विभूषित अंगों वाले ! कामदेव के शरीर को नष्ट करने वाले ! तुम्हे हम नमस्कार करते है । देव ! तुम स्वर्णिम वस्त्र धारण करने वाले हो, हिरण्यबाहु हो । हे हिरण्यरूप, तुम्हें हमारा वारम्बार नमस्कार है, हे हिरण्यनाभ ! तुम्हें हम नमस्कार करते हैं । हे सहस्रों नेत्रों से विचित्र आकृति वालेहिरण्यरेता देव ! तुम्हें हमारा नमस्कार है, नमस्कार है ।४४-४७ हे देव ! तुम हिरण्य के समान वर्णवाले हो, हिरण्यगर्भ हो। हे देव ! तुम हिरण्य का चीर धारण करने वाले हो, हिरण्य दान करने वाले हो, तुम्हें हम नमस्कार हैं । करते हे हिरण्य की माला धारण करने वाले देव ! तुम्हें हमारा नमस्कार है, देव ! तुम हिरण्यवाही हो, तुम्हें हम नमस्कार करते है । हे देव ! तुम हिरण्यवर्मा हो, अतिभीषण नाद करने वाले तुम्हें हमारा नमस्कार है, नमस्कार है । हे भीषणवेगशालो ! शंकर ! नीलकण्ठ ! तुम्हें हमारा नमस्कार है । हे दिव्य सहस्र वाहु धारण करने वाले ! नृत्य एवं वाद्य को पसन्द करने वाले ! तुम्हें हमारा बारम्बार नमस्कार है ।४८-५० । इस प्रकार स्तुति किये जाने पर महाबुद्धिमान्, कोटि सूर्य के समान कान्ति वाले, महायोगी भगवान् प्रकट हुए । उस समय प्रसन्नचित्त महेश्वर महादेव प्राथियों की ओर मुख कर कुछ बोलते हुए शेतकोटि मुखों द्वारा आकाश को निगलते हुए से शोभित हो रहे थे। उस समय भगवान् पिनाकपाणि अति शोभायुत हो रहे थे। उनके एकमात्र कण्ठ था जटा एक थी, शरीर विविध आभूषणों से विभूषित था, विविध रसों से अह्नो की शोभा फा०-५५