पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५३३

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५१२ ·ः वायुपुराणम मन्वन्तरान्ते संहारः संहारान्ते च संभवः । देवतानामृषीणां च मनोः पितृगणस्य च : न शवयमानुपूर्व्येण वक्तुं वर्षशतैरपि । विस्तरस्तु निसर्गस्य संहारस्य च सर्वशः ॥ मन्वन्तरस्य संख्या तु मानुषेण निबोधत : ॥१३७ ॥१३८ ॥१३६ देवतानामृषीणां च संख्यानार्थविशारदैः । त्रिशत्कोटचस्तु संपूर्णाः संख्याताः संख्यया द्विजैः सप्तर्षाण्टिस्तथाऽन्यानि निघुतानि च संख्यया | विशतिश्च सहस्राणि कालोऽयं सांधिकाद्विना मन्वन्तरस्य संख्यैषा मानुषेण प्रकीर्तिता । वत्सरेणैव दिव्येन प्रवक्ष्याभ्यन्तरं मनोः, अष्टौ शतसहस्त्राणि दिव्यया संख्यया स्मृतम् | द्विपश्चाशत्तथान्यानि सहस्राण्यधिकानि तु ॥१४१ चतुर्दशगुणो ह्येष काल आमूतसंप्लवः । पूर्ण युगसहस्रं स्यात्तदहर्ब्रह्मणः स्मृतम् ॥ १४० ॥१४२ तत्र सर्वाणि भूतानि दग्धान्यादित्यरश्मिभिः । ब्रह्माणमग्रतः कृत्वा सहदेवषिदानवैः ॥ प्रविशन्ति सुरश्रेष्ठं देवदेवं महेश्वरम् ॥१४३ ॥१४४ स स्रष्टा सर्वभूतानि कल्पादिषु पुनः पुनः । इत्येष स्थितिकालो वै मनोर्देवषिभिः सह सर्वमन्वन्तराणां वै प्रतिसंधि निबोधत | युगाख्या या समुद्दिष्टा, प्रागेवास्मिन्मयाऽनघाः : ॥१४५ £ 1 है । तीस करोड़, सड़सठ नियुत ( एक नियुत काल को महिमावश व्यतीत हो चुके है, उसी प्रकार एवं उसी क्रम से अपने समय में होनेवाली प्रजाओं के साथ सैकड़ों, सहस्रो अन्य कल्प तथा मन्वन्तर भी व्यतीत हो चुके है |१३१-१३५ । एक मन्वन्तर की समाप्ति पर सब का संहार हो जाता है, और संहार के बाद फिर देवताओं, ऋषियों, पितरों तथा मनु सब को पुनः सृष्टि (उत्पत्ति) होती है । इन संहार एवं सृष्टि का विस्तारपूर्वक समग्र क्रमबद्ध वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नही किया जा सकता । मन्वन्तर की संख्या मनुष्य के वर्षों से रहा हूँ, 'सुनिये । १३६-१३७॥ देवताओं तथा ऋपियों की संख्या को भलो भाँति जानने वाले द्विजगण मन्वन्तर के वर्ष की संख्या इस प्रकार बतलाते दस लाख माना गया है । ) बीस सहस्र वर्ष संधिकाल के बिना एक मन्वन्तर की अवघि मानी गई है ।१३८-१३९॥ मन्वन्तर की यह संख्या मानव परिमाणों से बतलाई गई है, अव दिव्य (देवताओं के ) वर्षो से मन्वन्तर का प्रमाण बतला रहा हूँ | आठ लाख बावन सहस्र दिव्य वप की सख्या स्मरण की जाती है I इस कालावधि का चौदह गुना काल महाप्रलय का है जब कि एक सहम बीत जाते हैं इसे ब्रह्मा एक दिन कहा गया है ।१४०-१४२। उस समय सभी जीव समूह सूर्य की किरणों से जब भस्म होने लगते हैं तब देवताओं ऋपियो और दानवों के साथ ब्रह्मा को आगे कर सुरश्रेष्ठ देवदेव महादेव के शरीर में प्रविष्ट होते हैं। वे देवदेव महेश्वर प्रत्येक कल्प के प्रारम्भ में सभी जीव-समूहो की पुन: पुनः सृष्टि करते है | देवताओं और ऋषियों के साथ मनु की स्थिति को वह कालावधि में बतला चुका अब सभी मन्वन्तरों में होनेवाली प्रतिसंधि को सुनिये । निष्पाप ऋषिगण उस प्रतिसंधि को सतयुग, युग 1