पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५६२

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त्रिषष्टितमोऽध्यायः चाक्षुषस्यान्तरेऽतीते प्राप्ते वैवस्वते पुनः | वैन्येनेयं मही दुग्धा यथा ते कोर्तितं मया एतैर्दुग्धा पुरा पृथ्वी व्यतीतेष्वन्तरेषु वै । देवादिभिर्मनुष्यैश्च तथा भूतादिभिश्च यः ( + एवं सर्वेषु विज्ञेया ह्यतीतानागतेष्विह | देवा मन्वन्तरेष्वस्य पृथोस्तु शृणुत प्रजाः पृथोस्तु पुत्रौ विक्रान्तौ जज्ञातेऽन्तधिपालिनौ । शिखण्डिनो हविर्धानमन्तधानाद्व्यजायत हविर्धानात्षडाग्नेयी धिषणाऽजनयुयुत्सुतान् । प्राचीनबहिषं शुक्रं गयं कृष्णं व्रजाजिनौ प्राचीन बहिर्भगवान्महानासीत्प्रजापतिः । बलश्रुततपोवीर्यैः पृथिव्यामेकराडसौ ॥ प्राचीनाग्राः कुशास्तस्य तस्मात्प्राचीनवर्हासौ समुद्रतनयायां तु कृतदारः स वै प्रभुः । महतस्तमसः पारे सवर्णायां प्रजापतिः ॥ सवर्णाऽधत्त सामुद्री दश प्रचीनवहषः ) सर्वे प्रचेतसो नाम धनुर्वेदस्य पारगाः | अपृथग्धर्मचरणास्तेऽतप्यन्त महत्तपः ॥ दश वर्षसहस्राणि समुद्रसलिलेशयाः ५४१ ॥१६ ।।२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ।।२५ ॥२६ दोह्न किया । चाक्षुष नामक मन्वन्तर के बीत जाने पर जब पुनः वैवस्वत नामक मन्वन्तर प्रारम्भ हुआ सब वेन पुत्र राजा पृथु ने जिस प्रकार इस पृथ्वी का दोहन किया था, उसका वर्णन मै कर चुका १६-१६। बीते हुए मन्वन्तरो मे इन्ही उपर्युक्त देवताओं, मनुष्यों तथा भूतादि ने पृथ्वी का दोहन किया था । व्यतीत एवं भविष्यत्कालीन मन्वन्तरों में इसी प्रकार उन्हीं देवताओं को जान लेना चाहिये जिनका वर्णन मैं कर चुका । अब इस राजा पृथु की प्रजाओं के विषय में मुझसे सुनिये । उस राजा पृथु के अन्तर्षि और पाली नामक दो महानू बलशाली पुत्र हुए । जिनमें अन्तर्धान से शिखण्डिनी ने हविर्धान नामक पुत्र उत्पन्न किया |२०-२२। आग्नेयी घिषणा ने हविर्धान के संयोग से प्राचीनबर्हस्, शुक्र, गय, कृष्ण, व्रज और अजिन नामक छ पुत्रों को उत्पन्न किया | परम ऐश्वर्यशाली प्राचीनबहिस् एक महान् प्रजापति था वह अपने बल, शास्त्र ज्ञान, तपस्या और पराक्रम से समस्त पृथ्वीमण्डल का एकच्छत्र सम्राट् था | यज्ञादि कार्यो मे उसके कुशो के अग्र भाग पुराने पड जाते थे अतः प्राचीनबहिस् नाम से वह प्रसिद्ध हुआ । महान् अज्ञानान्धकार से पार हो जाने पर उस प्रजापति एवं सम्राट् ने समुद्र पुत्री सवर्णा से विवाह संस्कार किया | समुद्र-कन्या सवर्णा ने उसके सयोग से दस पुत्रों को जन्म दिया जो सबके सब प्रचेता के नाम से विख्यात होकर धनुर्वेद में पारंगत थे । एक ही प्रकार के धर्माचरण करने वाले उन प्रचेताओं ने दस सहस्र वर्षों तक समुद्र के जल में शयन कर परम कंठोर तप किया | २३-२६ | जिस समय प्रचेता गण तप कर रहे थे उस समय विना रखवाली + धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थो ङ. पुस्तके नास्ति ।