पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५७६

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पञ्चषष्टितमोऽध्यायः लोकस्य संस्थानकरास्तैरिमा वर्धिताः प्रजाः । प्रजापतय इत्येवं पठयन्ते ब्रह्मणः सुताः अपरे पितरो नाम एतैरेव महर्षिभिः । उत्पादिता ऋषिगणाः सप्त लोकेषु विश्रुताः मारीचा भार्गवाश्चैव तथैवाङ्‌ गिरसोऽपरे । पौलस्त्याः पौलहाश्चैव वाशिष्ठाश्चैव विश्रुताः || आत्रेयाश्च गणाः प्रोक्ताः पितॄणां लोकविश्रुताः एते समासतस्तात पुरैव तु गुणास्त्रयः । अमूर्ताश्च प्रकाशाश्च ज्योतिष्यन्तश्च विश्रुताः तेषां राजा यमो देवो यसैविहतकल्मषः । अपरे प्रजानां पतयस्ताञ्शृणुध्वमतन्द्रिताः कर्दमः कश्यपः शेषो विनान्तः सुश्रवास्तथा । बहुपुत्रः कुमारश्च विवस्वान्सशुचिश्रवाः प्रचेतसोऽरिष्टनेमिर्बहुलश्च प्रजापतिः । इत्येवमादयोऽन्येऽपि बहुवश्च प्रजेश्वराः कुशोच्चया वालखिल्याः संभूताः परमर्षयः । मनोजवाः सर्वगताः सार्वभौमाश्च तेऽभवन् जाता भस्मव्यपोहिन्यां ब्रह्मषिगणसंमताः । वैखानसा सुनिगणास्तपः श्रुतपरायणाः श्रोतोभ्यस्तस्य चोत्पन्नावश्विनौ रूपसंमितौ | विदुर्जन्माक्षरजसो विमला नेत्रसंभवाः ज्येष्ठाः प्रजानां पतयः श्रोतोभ्यस्तस्य जज्ञिरे | ऋषयो रोमकूपेभ्यस्तथा स्वेदमलोद्भवाः ५५५ ॥४८ ।।४६ ॥५० ॥५१ ॥५२ ॥५३ ॥५४ ॥५५ ॥५६ ॥५७ ॥५८ सब लोक की सन्तान वृद्धि करनेवाले है, और इन्हीं लोगों ने प्रजाओं की वृद्धि की है। इसी कारण ब्रह्मा के ये पुत्र गण प्रजापति कह कर पुकारे जाते है। इन्ही महर्षियो द्वारा दूसरे पितर नामक लोक विख्यात ऋषिगण भी उत्पन्न हुए |४६-४८१ वे लोक प्रसिद्ध सात पितरगण मारीच, भार्गव, आङ्गिरस पौलस्त्य, पौलह, वाशिष्ठ और आत्रेय के नाम से विख्यात है । हे तात ! सक्षेप में इन पितर गणों का वर्णन कर चुका, ये तोनों गुणों के विकार से समुत्पन्न, मूर्तिरहित, स्वयं प्रकाशमान, ज्योतिष्मान् एवं विख्यात हैं |४६०५१॥ उन पितरों के राजा यम नामक देव हैं, जिनके पाप तपस्या द्वारा नष्ट हो चुके है। अब आप लोग साव- धानतापूर्वक अन्य प्रजापतियों के विषय मे सुनिये । कर्दम, कश्यप, शेष, विक्रान्त, सुश्रवा, बहुपुत्र, कुमार, विवस्वान्, शुचिश्रवा, प्रचेतस, अरिष्टेमि एवं बहुल नामक प्रजापतियों के अतिरिक्त अन्यान्य बहुतेरे प्रजापति हो गये हैं |५२-५४। उनमे कुशोच्चय एव बालाखल्य गण परम ऋषि हो गये है, जो सब के सब मन के समान वेमशाली, सर्वगामी, तथा सार्वभौम थे ॥५५॥ ब्रह्मषियों द्वारा सम्माननीय, तपस्या एवं शास्त्राभ्यास में निरत रहनेवाले वैखानस मुनिमण यज्ञ के भस्म से प्रादुर्भूत हुए । उस ( ब्रह्मा ) के कानों से अति रूपवान् दो अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई। नेत्र से उत्पन्न होनेवाले निष्पाप, उन्म से इन्द्रिय को स्ववश रखनेवाले तथा सात्त्विक प्रकृतिवाले ऋषिगण इस वृत्तान्त को जानते है । उसके कानों से अन्यान्य श्रेष्ठ प्रजापतियों की उत्पत्ति हुई, रोमछिद्रो से अन्यान्य ऋपियों की उत्पत्ति हुई, इसी प्रकार स्वेद एवं मल से भी कुछ प्रजापतियो की उत्पत्ति हुई । ५६ ५८ उसके स्वर से दारुण मास, निर्यास (?) पक्षो की संधियाँ, वत्सर दिन रात एवं