पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५८२

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पञ्चषष्टितमोऽध्यायः भारीचं परिवक्ष्यामि वंशभुत्तमपुरुषम् | यस्थान्ववाये संभूतं जगत्स्थावरजङ्गमम् मरीचिरापश्चकमे ताभिर्ध्यायन्प्रजेप्सया | पुत्रः सर्वगुणोपेतः प्रजावान्सुरुचिदितिः ॥ संपूज्यते प्रशस्तायां मनसा भाविता प्रभुः ॥११० ॥१११ ॥११२ ॥११३ आहूताश्च ततः सर्वा आपः समवसत्प्रभुः । तासु प्रणिहितात्मानमेकः सोऽजनयत्प्रभुः पुत्रमप्रतिमन्नाम्नाऽरिष्टनेमिः प्रजापतिः । पुत्रं मरीचं सूर्याभं वधौ वेशो व्यजीजनत् प्रध्यायन्हि सतां वाचं पुत्रार्थी सलिले स्थितः । सप्त वर्षसहस्राणि ततः सोऽप्रतिमोऽभवत् कश्यपः सवितुविद्वांस्तेन स ब्रह्मणः समः । मन्वन्तरेषु सर्वेषु ब्रह्मणांऽशेन जायते कन्यानिमित्तमित्युक्ते दक्षेण कुपिताः प्रजाः । अपिबत्स तदा कश्यं फश्यं मद्यमिहोच्यते

  • हाश्चेकसा हि विज्ञेया वाङ्मनः कश्य उच्यते | कश्यं मद्यं स्मृतं विप्रैः कश्यपानात्तु कश्यपः ॥११६

करोति नाम यद्वाचो बाचं रसुदाहृतम् । दक्षाभिशप्तः कुपितः कश्यपस्तेन सोऽभवत् ॥११४ ॥११५ ॥११७ ५६१ ॥१०६ बहुत अधिक बतलाई गई है ।१०४ - १०८ | उत्तम पुरुषों वाले मरीचि पुत्रों के वंश का वर्णन अब मै कर रहा हूँ जिसके वंश मे समस्त स्थावर जंगम जगत् की उत्पत्ति हुई । सर्वप्रथम मरीचि ने जल की कामना की ओर सन्तति की इच्छा से उसी के द्वारा ध्यान मग्न हुए । 'सभी सदगुणो से सम्पन्न सन्ततिवान् शुभ- इचिवाले पुत्र की उत्पत्ति से लोक मे प्रतिष्ठा बढ़ती है। इस प्रकार की भावना प्रभु मरीचि के मन में हुई |१०६-११०। तदनन्तर मरीचि के आवाहन करने पर सभी जल समूह उनके समीप उपस्थित हुए । भगवान् मरीचि ने उस जल राशि मे निवास किया | उसमे स्थित हो परम ऐश्वर्यशाली मरीचि ने पुत्र की कामना कर जितेन्द्रिय एवं अनुपम तेजस्वी अरिष्टनेमि नामक पुत्र को उत्पन्न किया, जो प्रजापति हुआ | मरीचि का वह पुत्र सूर्य के समान तेजस्वी •• (?) उत्पन्न हुआ | जलराशि मे स्थित होकर सज्जनों को कल्याणदायिनी बाणी का विशेष ध्यान करते हुए मरीचि सात सहस्र वर्ष तक स्थित रहे जिससे उनका वह पुत्र अनुपम हुआ । ( उसी अरिष्टनेमि का दूसरा नाम कश्यप था ) कश्यप सविता के जनक थे | अत उनकी महत्ता ब्रह्म के समान थी। सभी मन्वन्तरो मे वे ब्रह्म के अंश से अवतीर्ण होते है ।१११-११४॥ दक्ष ने कन्या के लिये जब सभी प्रजाओं को अप्रसन्न और कुपित कर दिया तब उन्होंने (अरिष्टनेमि ) कश्य (मद्य ) का पान किया। कश्य मद्य को कहते है | हाश्चेकस। (?) भी कश्य कहा जाता है । वचन और मन को कश्य कहते है । ब्राह्मणों ने कश्य मद्य को कहा है और उसी कश्य ( मद्य ) के पीने के कारण कश्यप नाम पड़ा । कन्या के लिए दक्ष द्वारा तिरस्कृत होकर उन्होंने कुपित होकर कठोर वाक्यों का प्रयोग किया

  • इदमधं नास्ति ङ्. पुस्तके |

फा०-७१