पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५८८

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षट्षष्टितमोऽध्यायः अथ षट्षष्टितमोऽध्यायः कश्यपीय प्रजासर्गः ऋषय ऊचु: देवानां दानवानां च दैत्यानां चैव सर्वशः । उत्पत्ति विस्तरेणेह ब्रूहि वैवस्वतेऽन्तरे सूत उवाच धर्मस्य तावद्वक्ष्यामि निसर्ग तं निवोधत | अरुन्धती वसुर्यामी लम्बा भानुर्मरुत्वती संकल्पा च मुहूर्ता च साध्या विश्वा तथैव च । धर्मपत्न्यो दश त्वेता दक्षः प्राचेतसो ददौ साध्या पुत्रांस्तु धर्मस्य साध्यान्द्वादश जज्ञिरे | साध्या नाम महाभागाश्छन्दजा यज्ञभागिनः || देवेभ्यस्तान्परान्देवान्देवज्ञाः परिचक्षते ब्रह्मणो वै सुखात्सृष्टा जया देवाः प्रजेप्सया | सर्वे मन्त्रशरीरास्ते स्मृता मन्वन्तरेविह ५६७ ॥१ ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ अध्याय ६६ कश्यप के सन्तानों की सृष्टिकथा ऋषियों ने कहा --सूतजी ! अब हम लोगों से वैवस्वत मन्वन्तर में होनेवाने देवताओं, दानवों एवं दैत्यो को उत्पत्ति का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये |१| सून ने कहा – ऋषिवृन्द ! सर्वप्रथम धर्म की प्रजाओं का सृष्टि क्रम बतला रहा हूँ, सुनिये | अरुन्धती, वसु, यामी, लम्वा, भानु, मरुत्वती, सकल्पा, मुहूर्ता साध्या और धर्मा – ये दस धर्म की पत्नियाँ थी, जिन्हें प्राचेतस दक्ष ने उनके लिये दिया था। साध्या ने धर्म के संयोग से बारह पुत्रों को जन्म दिया, जो साध्यगणों के नाम से प्रख्यात हैं। ये महाभाग्यशाली साध्य नामक देवगण छन्दों से उत्पन्न होनेवाले एवं यज्ञ में भाग पानेवाले कहे जाते है, देवताओं के वास्तविक महत्त्व को जाननेवाले लोग उन्हे देवताओं की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ एवं पूजनीय बतलाते हैं | २-४॥ ब्रह्मा ने सन्तति उत्पन्न करने की कामना से अपने मुखद्वारा जय नामक देवगणों की उत्पत्ति की, जो मन्वन्तर में सब के सब मंत्रमय शरीरवाले कहे गये हैं। उन जय नामक