पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/५९७

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

५७६ वायुपुराणम् प्रजापतेश्च विष्णोश्च भवस्य च महात्मनः । अन्तरं ज्ञातुमिच्छामो यश्च यस्माद्विशिष्यते यश्च यस्मात्प्रभवति यश्च यस्मिन्प्रतिष्ठितः । ज्यायान्यो मध्यमश्चैव कनीयान्यश्च तेषु वै प्रधानभूतो यस्तेषां गुणभूतश्च तेषु यः । कर्मभिश्चाभिजात्या प्रभावेण च यो महान् ॥ एतत्प्रमूहि नः सर्वं त्वं हि वेत्थ यथायथम् ॥८३ ॥८४ ॥८५ सूत उवाच ॥८६ अत्र वो वर्णयिष्येऽहमन्तरं तेषु यत्स्मृतम् । यद्ब्रह्मविष्णुरुद्राणां शृणुध्वं मे विवक्षतः राजसो तामसी चैव सात्त्विकी चैव ताः स्मृताः | तन्वः स्वयंभुवः प्रोक्ता काले काले भवन्ति याः ॥८७ एतासामन्तरं वक्तुं नैव शक्यं द्विजोत्तमा | गुणवृद्धिनिवद्धत्वाद्विषानुग्रहवन्धतः प्रवृत्तिच निवृत्ति च गुणवृद्धिमिह द्विजः । यथाशक्त्या प्रवक्ष्यामि तनूनां तन्निबोधत ॥८५ 1158 [* ब्राह्मी तु राजसी तेषां कालाख्या तामसी स्मृता | सात्त्विकी पौरूपी चैव कर्म तासां निबोधत] ॥६० द्वारा सत्कुलीन तथा विख्यात हुए ? महान् प्रभावशाली भगवान् ब्रह्मा, विष्णु और भवदेव में परस्पर क्या अन्तर है ? इसे जानना चाहता हूँ कि इनमें कौन किस कारण वश विशेष माना जाता है ? इनमें जो जिसमे आविर्भूत होता हो, जो जिसमे प्रतिष्ठित हो, इसे हम जानना चाहते है । इन तीनों में जो सर्वश्रेष्ठ हो, जो मध्यम हो, जो कनिष्ठ हो, हमें वताइये । इनमें जो सर्वप्रधान हो, जो सर्वश्रेष्ठ गुणो हो, कर्म एवं प्रभाव के कारण जो सबसे अधिक आभिजात्य एवं महान् हो, इन सबका मुझे भेद बतलाइये क्योंकि इन सब बातों के आप हो यथार्थतः जानकर हैं |८२-८५/ सूत ने कहा - ऋषिवृन्द ! उन ब्रह्मा, विष्णु तथा रुद्र मे परस्पर जो अन्तर माना गया है, उसे मै आप लोगों से बतला रहा हूं, सुनिये | राजस गुणमयी, तामस गुणमयी एवं सात्त्विक गुणमयी ये सीन स्वयम्भू की मूर्तियाँ ब्र्ही गई हैं, समय समय पर आविर्भूत होती है । हे हिजोत्तम वृन्द | इनके पारस्परिक अन्तर नही बनलाये जा सकते । क्योंकि इनमें पारस्परिक इन तीनों गुणो का ह्रास एवं वृद्धि के कारण विग्रह और अनुग्रह-दो प्रकार के वन्धन रहते हैं । हे द्विजगण ! वे बन्धन क्रमशः निवृत्ति और प्रवृत्ति के हैं । मै अपनी शक्ति के अनुसार उन मूर्तियों की प्रवृत्ति एवं निवृत्ति का वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये १८६-८९। उन त्रिमूर्तियो मे ब्रह्मा की मूर्ति रजोगुण सम्पन्न, काल ( रुद्र ) की मूर्ति तमोगुण सम्पन्न एवं पौरुषी (विराट् पुरुष, विष्णु की) मूर्ति सत्त्व गुण सम्पन्न कही गई है. उनके कर्मों को सुनिये | उन त्रिमूर्तियों में एक पहिली जो मूर्ति है वह रजोगुण सम्पन्न होकर प्रजाओं को उत्पन्न करती है, दूसरी एक सत्त्व गुण सम्पन्न जो पौरुषी (विष्णु की मूर्ति है वह समुद्र मे स्थिर रहकर सभी प्रजाओं के ऊपर अनुग्रह बुद्धि से पालन करती है, एक

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति |