पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६२३

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

६०१ वायुपुराणम् राहुये॑ष्ठस्तु तेषां वै चन्द्रसूर्यप्रतर्दनः । इत्येते सिंहिकापुत्रा देवैरपि दुरासदाः दारुणाभिजनाः क्रूराः सर्वे ब्रह्मद्विषश्च ते | दशान्यानि सहस्राणि सैहिकेयो गणः स्मृतः निहतो जामदग्न्येन भागंत्रेण बलीयसा | स्वर्भानोस्तु प्रभा कन्या पुलोम्नोऽथ शची सु उपनादवीयमस्यापि शर्मिष्ठा वार्षपर्वणी । पुलोमा कालिका चैव वैश्वानरसुते उभे प्रभाया नहुषः पुत्रो जयन्तश्च शचीसुतः । पुरुं जज्ञेऽथ शर्मिष्ठा दुष्यन्तमुपदानवी वैश्वानरसुते होते पुलोमाकालिके उभे | उसे ह्यपि तु ते कन्ये सारीचस्य परिग्रहे ताभ्यां पुत्रसहस्राणि षष्टिर्दानवपुङ्गवाः । चतुर्दश तथाऽऽन्यानि हिरण्यपुरवासिनाम् पौलोमाः कालकेयाश्च दानवाः तुमहावलाः | अवध्या देवतानां ते निहताः सव्यसाचिना मयस्य जाता ये पुत्राः सर्वे वीरपराक्रमाः । मायावी दुन्दुभिश्चैव वृषश्च महिषस्तथा बालिको वज्रकर्णश्च कन्या मन्दोदरी तथा । दैत्यानां दानवानां च सर्ग एष प्रकीर्तितः दनायुषायाः पुत्रास्तु स्मृताः पञ्च महाबलाः । यरूरुवंलिजन्मौ च विरक्षश्च विषस्तथा अरूरोस्तनयः क्रूरो धुन्धुर्नाम महासुरः । निहतः कुवलाश्वेन उत्तङ्कवचनात्किल ॥२० ॥ २१ ● ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ ॥२६ 1130 ॥३१ राहु था, जो चन्द्रमा और सूर्य को कष्ट देने वाला था । ये सिंहिका पुत्रगण देवताओ से भी अजेय -थे-- और वे सब के सब परम दारुण चित्तवृत्तिवाले, क्रूर, तथा ब्राह्मण द्वेषो थे । इनके अतिरिक्त अन्य दस सहस्र राक्षसों का समूह था, जो सँहिकेय नाम से स्मरण किया जाता था |१५-२१॥ उसका संहार वलवान् भृगु वंशोद्भव जामदग्न्य परशुराम ने किया था। स्वर्भानु की कन्या का नाम प्रभा था, पुलोमा की पुत्री सूची थी | मय को. पुत्री उपदानवी और वृषपर्वा को पुत्री शर्मिष्ठा थी । पुलोमा और कालिका- ये दोनो वैश्वानर की पुत्रियां थी । तिनमें से प्रभा का पुत्र नहुष और णची का पुत्र जयन्त हुआ, शर्मिष्ठा ने पुरु को और उपदानवी ने दुष्यन्त. को उत्पन्न किया । वैश्वानर को दोनो पुत्रिय, प्रलोमा और कालिका जो थी, वे दोनो ही मरीचिपुत्र कश्यप की स्त्रियाँ हुई ।२२-२५। उन दोनों से एक सहस्र प्रमुख दानव पुत्र उत्पन्न हुए, इनके अतिरिक्त चौदह सहस्र अन्य दानव थे जो हिरण्यपुर निवासी थे । पुरलोमा, और कालका से उत्पन्न होनेवाले वे पौलोम और कालकेय नामक दानवगण महावलवान् थे, देवता भी उनका वष नही कर सकते थे, उन सब का सहार, सव्यसाची अर्जुन ने किया । मय के जो पुत्र हुये वे सब के सब बड़े वीर और पराक्रमी थे, उनके नाम मायावी, दुन्दुभि, वृष, महिष, वालिक और वज्रकर्ण थे, मय की कन्या मन्दोदरी थी | दैत्यों और दानवो को सृष्टि की यह कथा आप लोगों को बतला चुका |२६-२९| दनायुषा के पाँच महाबलवान्, पुत्र कहे जाते थे, जिनके नाम अरुण, बलि, जन्म, विरक्ष और विष थे । अरुण का पुत्र धुन्धु नामक महान् असुर था, जो क्रूर प्रकृति का था, उसका संहार उतङ्क के कहने पर कुबलाइव ने किया था | वलि के दो अनुपम ट्रेनस्वी एवं पराक्रमी पुत्र हुये €