पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६४४

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नवर्षाष्टितमोऽध्यायः ॥१६१ ॥१६२ समासाभिहताश्चैव ह्यष्टो राक्षसमातरः । अष्टौ विभागा ह्येषां हि विख्याता अनुपूर्वशः भद्रका निकराः केचिद्यज्ञनिष्पत्तिहेतुका: (?) | सहस्रशतसंख्याता मर्त्यलोकविचाचरिणः पूतना मातृसामान्यास्तथा भूतभयंकराः । बालानां मानुषे लोके ग्रहा वैमानहेतुफाः स्कन्दग्रहादयश्चैव आपकास्त्रासकादयः । कौमारास्ते तु विज्ञेया बालानां ग्रहवृत्तयः स्कन्दग्रह विशेषाणां मायिकानां तथैव च । पूतनानामभूतानां ये च लोकविनायकाः सहस्रशतसंख्यानां मर्त्यलोकविचारिणाम् । एवं गणशतान्येव चरन्ति पृथिवीमिमाम् यक्षाः पुण्यजना नाम तथा गे केऽपि गुह्यकाः | यक्षा देवजनाश्चैव तथा पुण्यजनाश्च गुह्यकानां च सर्वेषामगस्त्या ये च राक्षसाः। पौलस्त्या राक्षसा ये च विश्वामित्राश्च ये स्मृताः ॥ १६५ यक्षाणां राक्षसानां च पौलस्त्यागस्तयश्च ये | तेषां राजा महाराजः कुबेरो ह्यलकाधिपः यक्षा दृष्ट्वा पिबन्तीह नृणां मांसमसृग्वसाम् | रक्षांस्यनुप्रवेशेन पिशाचाः परिपीडनैः सर्वलक्षणसंपन्नाः समक्षेत्राश्च दैवतैः । भास्वरा बलवन्तश्च ईश्वराः कामरूपिणः ॥१९३ थे ॥१६४ ॥१६६ ॥१६७ ॥१६८ ६२३ ॥१८८ ॥१८६ ॥१६० को आक्रान्त कर लिया है। संक्षेप में इन सब क्षुद्रराक्षसों की आठ माताएँ है, और उसी के अनुरूप इनके आठ विभाग कहे जाते हैं, जिन्हें क्रमानुसार कहा गया है।१८६-१८८। इनमें से एक का नाम भद्रका और गण का नाम निकर है, जिनमें कुछ ज्ञानोत्पत्ति के कारण हैं (?) मर्त्यलोक में विचरण करनेवाले इस गण में सैकड़ों, सहस्रों की संख्या में राक्षसगण विद्यमान हैं। दूसरी माता पूतना है, और गण का नाम मातृ सामान्य है, जो भयंकर भूत है | यह पूतना मानवलोक में बच्चों को पकड़नेवाली एवं कष्ट देकर बहुत परेशान करनेवाली है । स्कन्वग्रह आदि आपक, त्रासक आदि और कोमा गण इन सब को बालकों को ग्रहों के समान कष्ट देने वाले जानने चाहिये । माया करने वाले मायिक नामक ग्रहों स्कन्द नामक ग्रहों, तथा पूतना नामक अभूत ( 8 ) ग्रह विशेष में से जो लोक में विविध विघ्नों के करने वाले हैं, वे लाखों की संख्या में मर्त्यलोक में विचरण करते हैं। इसी प्रकार अन्याय भूतों एवं ग्रहों के सैकड़ों गण इस पृथ्वी पर विचरण किया करते है |१८६-१९६३ पुण्यजन नामक यक्ष, गुह्यक नाम से प्रसिद्ध क्ष एवं देवजन नामक यक्ष-ये सभी गुह्यकों के अन्तर्गत है । अगस्त्य नामक जो राक्षसगण हैं, पौलस्त्य नामक जो राक्षस गण हैं विश्वामित्र के गोत्र में जो राक्षसगण उत्पन्न हुए हैं, यक्षों एवं राक्षसों वश मे उत्पन्न होनेवाले पौलस्त्य एवं. अगस्त्य नामक जो यक्ष राक्षस हैं, उन सबो के राजा महाराज कुबेर हैं, जो अल्का नामक नगरी के अधीश्वर हैं ये यक्ष गण केवल आँखों से देखकर मनुष्य के रक्त मांस एवं चर्बी को पी जाते हैं, राक्षस गण शरीर के भीतर प्रवेश कर के पी जाते हैं और पिशाच गण बुरी तरह पीड़ित कर के पी जाते हैं । जो सभी प्रकार के लक्षणों से सम्पन्न एवं देवताओं के समान अधिकारी, तेजस्वी, बलवान्, ऐश्वर्य मय