पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५२

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नवर्षाष्टितमोऽध्यायः कपिशा जज्ञे कूष्माण्डी कूष्माण्डाञ्जज्ञिरे पुनः । मिथुनानि पिशाचानां वर्णेन कपिशेन च ॥ कपिशत्वात्पिशाचास्ते सर्वे च पिशिताशनाः युग्मानि षोडशान्यानि वर्तमानास्तदन्वयाः । नामतस्तान्प्रवक्ष्यामि पुरुषादांस्तदन्छ्यान् छगलश्छगली चैव बक्को वक्रसुखो तथा । षोडशानां गणा चैव सूची सूचीमुखस्तथा कुम्भपात्रश्च कुम्भी च वज्रदंष्ट्रश्च दुन्दुभिः | उपचारोपचारश्च उलूखल उलूखली अनर्कश्च अनर्का च कखण्डश्च कुखण्डिका | पाणिपात्रा पाणिपात्री पांशुः पांशुमती तथा नितुण्डश्च नितुण्डी च निपुणा निपुणस्तथा । छलादोच्छेषणा चैव प्रस्कन्दः स्कन्दिका तथा ॥ षोडशानां पिशाचानां गणाः प्रोक्तास्तु पोडश अजामुखा बकसुखाः पूरिणः स्कन्दिनस्तथा । विषादाङ्गारिकाश्चैव कुम्भपात्राः प्रकुन्दकाः उपचारोलूखलिका ह्यनर्काच कुखण्डिकाः | पाणिपात्राश्च नैतुण्डा ऊर्जाशा निपुणास्तथा सूचीसुखोच्छेषणादाः कूलान्येतानि षोडश । इत्येता हाभिजातास्तु कूष्माण्डानां प्रकीर्तिताः पिशाचास्ते तु विज्ञेयाः सुकुल्या इति जज्ञिरे । बीभत्सं विकृताचारं मनन्तकम् ॥ अतस्तेषां पिशाचानां लक्षणं च निबोधत . ६३१ ।।२५७ ॥२५८ ३।२५६ ॥२६० ॥२६१ ॥२६२ ॥२६३ ॥२६४ ॥२६५ ॥२६६ चुका । २५१-२५६। कपिशा कुष्माण्डी ने कुष्माण्ड के संयोग से पिशाच दम्पतियों को जन्म दिया जो सब कपिश (भूरे या मटमैले) रंग के थे । कपिश वर्ण होने के कारण वे पिशाच कहलाये । ये सब मांसाहारी थे । अन्य सोलह पिशाच दम्पति हैं, जिनके वंशज वर्तमान हैं। उनके वंशधरो का नाम बतला रहा हूँ, वे सब मनुष्य का भक्षण करनेवाले थे । छगल और छगलो, वक्र और वऋमुखी सूचीमुख और सूची, कुम्भपात्र और कुम्भी वज्रदंष्ट्र और दुन्दभि, उपचार और अपचार उलूखल और उलूखली, अनर्क और अनर्का, कुखण्ड और कुखण्डिका, पाणिपात्र और पाणिपात्री, पांशु और पांशुमती, नितुण्ड और नितुण्डी, निपुण और निपुणा छलाद और उच्छेषणा तथा पुस्कन्द और स्कन्दिका - ये सोलह (?) पिशाच दम्पतियो के गण कहे गये हैं । २५७-२६२। अजामुख, यकमुख, पूरी, स्कन्दी, विपाद, अङ्गारिक, कुम्भपात्र, प्रकुन्दक, उपचार, उलूखलिक, अनर्क, कुखण्डिक, पाणिपात्र. नैतृण्ड, ऊर्णाश, निपुण, सूचीमुख, और उच्छेषणाद कहे जानेवाले सोलह (?) कुल हैं | कुष्माण्ड के कुल मे उत्पन्न होने वाले इन कुलीनों का वर्णन किया गया। इन्हीं के कुन में उत्पन्न होनेवाले अन्यान्य पिशाचों को जानना चाहिये । इनके पुत्र पौत्रादि की संख्या अनन्त है सव अति षीभत्स आकृतिवाले तथा निन्द्य कर्म करनेवाले थे, अतः उन पिशाचो के लक्षण बनला रहा हूँ, सुनिये |२६३-२६६। २. संख्या अठारह हो जाती है, अतः इन नामों में से कोई विशेषण है। पर प्रमाणाभाव से हमने अनुवाद यथातथ्य कर दिया है ।