पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/६५३

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६३२ वायुपुराणम् सर्वाङ्गकेशा वृत्ताख्या दंष्ट्रिणो नखिनस्तथा । तिर्यङ्गाः पुरुषादाश्च पिशाचास्ते ह्यधोमुखाः ॥२६७ अकेशका ह्यरोमाणस्त्वग्वसाश्चर्मवाससः | कूष्माण्डिकाः पिशाचास्ते तिलभक्षा : सदामिषाः ||२६ वक्राङ्गहस्तपादाश्च वक्रशीलागतास्तथा । ज्ञेया वक्रपिशाचास्ते वक्रगाः कामरूपिणः लम्बोदरास्तुण्डनाशा ह्रस्वकायशिरोभुजाः । नितुन्दकाः पिशाचास्ते तिलभक्षाः प्रियश्रवाः वामनाकृतयश्चैव वाचालाः प्लुतगामिनः | पिशाचानर्कमर्कास्ते वृक्षवासादनप्रियाः ऊर्ध्वबाहूर्ध्वरोमाण उद्वृत्ताश्च तथालयाः । मुश्चन्ति पांशूनङ्गेभ्यः पिशाचा: पांशवश्च ते धमनीमन्तकाः शुष्काः श्मश्रुलाश्चीरवाससः । उपवीराः पिशाचाश्च श्मशानायतनास्तथा विष्टब्धाक्षा महाजिह्वा लेलिहाना हातूखलाः | हस्त्युष्ट्रस्यूल शिरसो विरता बद्धपिण्डका: पिशाचाः कुम्भपात्रास्ते अदृष्टान्नानि भुञ्जते । सूक्ष्मास्तु रोमशाः पिङ्गा दृष्टादृष्टाश्चरन्ति वै ॥२७५ ।।२७४ ॥२६६ ॥२७० ॥२७१ ॥२७२ ॥२७३ पिशाचों के सभी अंगों में केश होते हैं, आँखे गोली होती है, बड़े-बड़े दाँत तथा नख होते हैं, अंग टेढ़े-मेढ़े रहते है, मनुष्य का भक्षण करते है, उनके मुख नीचे की ओर झुके रहते है । कुष्मांडिक कहलानेवाले पिशाचगण विना केशो के होते है, शरीर पर रोम भी नही रहते, चमड़े, चर्वी, आदि को वस्त्र के स्थान पर लपेटे रहते है, वे सर्वदा माँस तथा तिल का बाहर करनेवाले हैं | २६७-२६८ | वक्र नामक पिशाचों के सभी अंग, हाथ पैर सब टेढ़े होते है, वे चलते समय भी टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलते है, सर्वदा टेढ़े वने रहते हैं, इच्छानुसार स्वरूप धारण करते है तथा वऋगामी हैं | २६६ | नितुन्दक नामक पिशाच लंबे पेटवाले, ऊँची उठी हुई नासिकावाले, छोटे शरीर वाले शिर और छोटे हाथवाले, तिल भक्षण करनेवाले तथा सुन्दर कानवाले हैं । अनर्क मर्क (?) नामक पिशाच गण बौने के समान आकृतिवाले, बहुत बोलनेवाले, उछल-उछल कर चलनेवाले, वृक्षों पर निवास करने तथा वृक्षों पर आहार पसन्द करनेवाले है | पांशु कहे जानेवाले पिशाचगण ऊर्ध्वं बाहुधारी होते हैं, उनके रोम ऊपर की ओर उठे हुए रहते हैं, उनके आवास स्थान भी ऊपर की ओर उठे हुये होते हैं, वे अपने अंगो से धूल गिराये चलते हैं । उपवीर नामक पिशाचगण अपनी धमनियों को जाननेवाले, सूखे हुए, मूंछ दाढ़ी रखे हुये, चीर धारणकरनेवाले तथा श्मशानो में निवास करनेवाले होते है । उलूखल नामक पिशाचगण निश्चल आँखों वाले, लवी जीभवाले, सर्वदा जीभ से होंठ चाटनेवाले, हाथो और ऊँट की तरह मोटे शिरवाले, विरत तथा समूह बाँधकर चलनेवाले होते हैं | २७०-२७४ | वे कुम्भपात्र नाम से विख्यात पिशाच है, जो बिना देखे हुये अन्न का भोजन करते है ये बहुत सुक्ष्म आकृतिवाले, सारे शरीर पर रोमावली युक्त, पीलेवर्ण तथा कहो पर दिखाई पड़नेवाले और कहीं पर न दिखाई पड़नेवाले होते है । वे निपुण नामक पिशाचगण है, जो इस भूलोक में अकेले पाने पर मनुष्यों में आविष्ट होते है, उनके मुख कानों