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६५२ वायुपुराणम् अकसप्ततितमोऽध्यायः श्राद्धप्रक्रियारम्भः

  • एतच्छू त्वा वचस्तस्य सूतस्य विदितात्मनः । उत्तरं परिपप्रच्छुः सुतसूत्रं द्विजातयः

49 शांशपायन उवाच कथं द्वितीयमुत्पन्ना भवानी प्रावसती तु या । आसोद्दाक्षायणी पूर्वमुमा कथमजायत मेनायां पितृकन्यायां जनयामास शैलराट् | चैते पितरश्चैव येषां मेना तू मानसं मैनाकश्चैव दौहित्रो दौहित्री च तथा ह्युमा । एकपर्णा तथा चैव तथा या चैकपाटला गङ्गा चैव सरिच्छे ष्ठा सर्वासां पूर्वजा तथा । पूर्वमेव मयोद्दिष्टं शृणुत्वं मम सर्वशः क एते पितरश्चैव वर्तन्ते क्व च वा पुनः । श्रोतुमिच्छामि भद्रं ते श्राद्धस्य च परं विधिम् ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ अध्याय ७१ श्राद्ध की प्रक्रिया तदनन्तर आत्मज्ञानी सृत की ये बाते सुन ब्राह्मणों ने (सूत) से पूछा " ? |१| शांशपायन ने कहा- सूतजी ! भव ( महादेव ) की प्रिया, जो पहले सती रूप में थीं, द्वितीय बार किस प्रकार उत्पन्न हुईं । पूर्व जन्म में वे दक्ष प्रजापति को पुत्री थी बाद मे वे उमा रूप मे कैसे उत्पन्न हुईं | शैलराज हिमवान् ने उन्हें पितरो की कन्या सेना में उत्पन्न किया - ऐसी प्रसिद्धि है । वे पितर गण कौन है, जिनकी मानसी कन्या मेना है ? मैनाक उनका दौहित्र है, तपस्या के समय एक पर्ण पर जीवन रखनेवाली उमा उनकी दौहित्री है, सबों को पूर्वज समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ सुरसरि उनकी सब से बड़ी सन्तति है, ~ इन सब बातो को तो हम लोग बहुत पहले ही से सुन चुके है । पर हमारी यह जिज्ञासा आप सुनिये कि ये पितरगण कौन हैं ? कहाँ निवास करते हैं ? इनके श्रद्धादि को विधियाँ क्या है - इन सब बातों को हम जानना चाहते है, आप का कल्याण हो |२-६ | ये किसके पुत्र है, और किस कारण वंश पितर नाम

  • एतस्मात्पूर्वं सूत उवाचेति ख. पुस्तके |