पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७७५

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७५४ वायुपुराणम ।७ ॥८ ॥१० कलिपुत्रौ महावीर्यौ जयश्च विजयश्च ह । वैद्यपुत्रौ घृणिश्चैव मुनिश्चैव महाबलौ प्रजानामत्तुकामानामन्योन्यस्य प्रभक्षिणौ । भक्षयित्वा तावन्योन्यं विनाशं समवापतुः कलिः सुरायां संजज्ञे तस्य पुत्रो मदः स्मृतः । त्वाष्ट्री हिंसा कलेर्भार्या ज्येष्ठा या निकृतिः स्मृता ॥६ असूतान्यान्कलेः पुत्रांश्चतुरः पुरुषादकान् । नाकं विघ्नं च विख्यातं सद्रमं विधसं तथा अशिकस्तयोवघ्नो नाकश्चैवाशरीरवात् । सद्गमश्चैकहस्तोऽभूद्विधमश्चैकपात्स्मृतः ॥११ सद्रमस्य तथा पत्नी तामसी पूतना स्मृताः | रेवती विधमस्यापि तयोः पुत्राः सहस्रशः नाकस्य शकुनिः पत्नी विघ्नस्य च अयोमुखी । राक्षसास्तु महाशीर्षा: संध्याद्वयविचारिणः रेवतीपूतनापुत्रा नैर्ऋता नामतः स्मृताः । ग्रहास्ते राक्षसाः सर्वे वालानां तु विशेषतः ॥ स्कन्दस्तेषामधिपतिर्ब्रह्मणोऽनुमते प्रभुः ॥१२ ॥१३ बृहस्पतेर्या भगिनी वरस्त्री ब्रह्मचारिणी | योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता चरते सदा प्रभासस्य तु सा भार्या वसूनामष्टमस्य तु । विश्वकर्मा सुतस्तस्या जातः शिल्पिप्रजापतिः त्वष्टा विराजा रूपाणां धर्मपौत्र उदारधीः । कर्ता शिल्पसहस्राणां त्रिदशानां च वास्तुकृत् ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ घृणि और मुनि नामक दो महा बलवान् पुत्र हुए। प्रजाओं के भक्षण करने को उत्सुक वे दोनों एक दूसरे को भक्षण करने को उद्यत हुए | और एक दूसरे को भक्षण कर विनाश को भी प्राप्त हुए । सुरा (गुना ?) के गर्भ से कलि की उत्पत्ति हुई, उसके पुत्र का नाम मद कहा जाता है। ध्वष्टा की पुत्री हिंसा कलि को स्त्री थी, जो ज्येष्ठ स्त्री थी, उसका नाम निकृति कहा जाता है |७-६। उसने कलि के संयोग से जिन चार मनुष्य- भक्षी पुत्रों को उत्पन्न किया, उनके नाम नाक, विघ्न, सद्रम और विधम थे | अगले दोनों पुत्रों में विघ्न नामक जो पुत्र था, वह शिर विहीन था, नाक अशरीरी था | सद्रम को केवल एक हाथ था, और विधम एक पैर वाला कहा जाता था ।१०-११॥ सद्रम की पत्नी परम तमोगुण मयी पूतना नाम से विख्यात थो, विधम की पत्नी रेवतो थी, इन दोनो के सहस्रों पुत्र थे । नाक की पत्नी का नाम शकुनि और विघ्न की पत्नी का नाम अयोमुखी था, जिनके बड़े-बड़े भीषण शिर वाले राक्षस उत्पन्न हुए, जो दोनो सन्ध्याओं में विचरण करते रहते थे । रेवती और पूतना के पुत्र नैॠत नाम से विख्यात थे । ये समस्त राक्षस ग्रह रूप में लोगों को विशेषतया बालकों को कष्ट पहुँचाते थे । ब्रह्मा की आज्ञा से इन सबों के स्वामी स्कन्द ( स्वामी कीर्तिकेय ) हुए |१२-१४१ असक्त भाव से समस्त जगत् मे सर्वदा विचरण करनेवाली ब्रह्मचारिणी एवं परम सुन्दरी योगसिद्धा नामक बृहस्पति की जो भगिनी थो, वह आठवें वसु प्रभास की भार्या थी। उसके पुत्र शिल्पियों के प्रजापति ( स्रष्टा) विश्वकर्मा हुए | धर्म के पौत्र उदार बुद्धि विश्वकर्मा परम सुन्दर आकृति से सुशोभित थे, देवताओं के सहस्रो शिल्प- कर्मों के वे करनेवाले तथा वास्तु विज्ञान के वेत्ता थे | उन्होंने समस्त देवताओं के विमानों ( उड़ने वाले रथों)