पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८८

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षडशीतितमोऽध्यायः करन्धमसुतश्चापि आविक्षिन्नाम वीर्यवान् । आविक्षितो व्यतिक्रासत्पितरं गुणवत्तया मनुत्तो नाम धर्मात्मा चक्रवतिसमो नृपः । संवर्तेन दिवं नीतः ससुहृत्सह बान्धवः विवादोऽत्र महानासीत्संवर्तस्य बृहस्पतेः । ऋद्धिं दृष्ट्वा तु यज्ञस्य क्रुद्धस्तस्य बृहस्पतिः संवर्तेन हृते यज्ञे चुकोप सुभृशं तदा | लोकानां स हि नाशाय दैवतैहि प्रसादितः मनुत्तश्चक्रवर्ती स नरिष्यन्तमवाप्तवान् । नरिष्यन्तस्य दायादो राजा दण्डधरो दमः तस्य पुत्रस्तु विक्रान्तो राजाऽऽसीदूराष्ट्रवर्धनः । सुधृतो तस्य पुत्रस्तु नरः सुधृतिनः सुतः केवलस्तस्य पुत्रस्तु बन्धमान्केवलात्मजः । अथ बन्धुमतः पुत्रो धर्मात्मा वेगवान्नृपः बुधो वेगवतः पुत्रस्तृणबिन्दुर्बुधात्मज । त्रेतायुगमुखे राजा तृतीये संवभूव ह L कन्या तु तस्य द्रविडा माता विश्रवसो हि सा | पुत्रश्चास्य विशालोऽभूद्राजा परमधार्मिकः विशालस्य समुत्पन्ना विशाला येनं निमिता । विशालस्य सुतो राजा हेमचन्द्रो महाबलः सुचन्द्र इति विख्यातो हेमचन्द्रादनन्तरम् | सुचन्द्रतनयो राजा धूम्राश्व इति विश्रुतः धूम्राश्वतनयो विद्वान्सृञ्जयः समपद्यत | सृञ्जयस्य सुतः श्रीमान्सहदेवः प्रतापवान् ७६७ ॥८ lle ॥१० ॥११ ॥ १२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ हुए | आविक्षित् ने अपने गुणों द्वारा अपने पिता का अतिक्रमण किया, उनके पुत्र परमधर्मात्मा, चक्रवतियों के समान प्रभावशाली राजा मनुत्त (महत्त) नामक हुए, जिन्होंने संवर्त नामक ऋषि की प्रेरणा से अपने मित्रों, तथा परिवार वर्ग वालों के साथ स्वर्ग प्राप्त किया। इस कार्य में संवर्त और बृहस्पति के बीच में महान् में विवाद खड़ा हो गया । उस यज्ञ की समृद्धि को देखकर वृहस्पति क्रुद्ध हुए |८-१०1 संवर्त के निर्विघ्न यज्ञ समाप्त कर देने पर तो वे बहुत क्रुद्ध हुए, समस्त लोकों के विनाश की सम्भावना देखकर देवताओं ने बृहस्पति को प्रसन्न किया । चक्रवर्ती राजा मनुत्त ने पुत्र रूप में नरिष्यन्त को प्राप्त किया, नरिष्यन्त का उत्तराधिकारी पुत्र दम हुआ, जो दण्ड देने में बड़ा कठोर था । उसका पुत्र राष्ट्रवर्धन पराक्रमी था। उसका पुत्र सुघृती और सुधूती का पुत्र नर हुआ |११-१३। उसका पुत्र केवल हुआ, केवल का पुत्र बन्धुमान हुआ । बन्धुमान का पुत्र परम धर्मात्मा राजा वेगवान हुआ | वेगवान का पुत्र बुध और बुध का पुत्र तृणविन्दु हुआ, यह राजा तृणविन्दु तीसरे त्रेतायुग के प्रारम्भ काल में विद्यमान था |१४ - ११॥ उस ( तृणविन्दु ) की कन्या द्रविडा थी जो विश्रवा को माता थी । इसका पुत्र परम धार्मिक राजा विशाल हुआ, इसी राजा विशाल ने विशाला नामक पुरी का निर्माण किया था, राजा विशाल के पुत्र महाबलवान् राजा हेमचन्द्र हुए। हेमचन्द्र के उपरान्त उनके पुत्र राजा सुचन्द्र की ख्याति हुई । राजा सुचन्द्र का पुत्र धूमाव नाम से विख्यात हुआ | १६-१८ | राजा धूमाव पुत्र परम विद्वान् राजा सूञ्जय उत्पन्न हुए । सृञ्जय के पुत्र श्रीमान् परम प्रतापी सहदेव हुए । सहदेव के के