पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७९५

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७७४ वायुपुराणम् चत्वारः प्रकृतौ वर्णाः प्रविचारश्चतुविधः | विकल्पयष्टधा चैव देवाः षोडशधा विदुः स्थायी वर्णः प्रसंचारी तृतीयमवरोहणम् । आरोहणं चतुर्थं तु वर्णं वर्णविदो विदुः तत्रैकः संचरस्थायी सचरास्तु चरीभवन् । अथ रोहणवर्णानामवरोहं विनिर्दिशेत् आरोहणेन चाऽऽरोहवर्णं वर्णविदा विदुः । एतेषामेव वर्णानामलंफारान्निबोधत अलंकारास्तु चत्वारः स्थापनो कमरेजिनः | प्रमादश्याप्रमादश्च तेषां वक्ष्यामि लक्षणम् विस्वरोष्ट्रकलाश्चैव स्थानादेकान्तरं गताः | आवर्तस्याक्रमोत्पत्ती द्वे कार्ये परिणामतः कुमारमपरं विद्याद्विस्तरं वमनं गतम् । एष वै चाप्यपाङ्गस्तु कुमारेफः कलाधिकः श्येनस्त्वेकान्तरे जातः कलामात्रन्तरे स्थितः । तस्मिश्चैव स्वरे वृद्धिस्तिष्ठते तद्विलक्षणा श्येनस्तु अपरोहस्तु उत्तरः परिकीर्तितः । कलाकलप्रमाणाच्च सविन्दुर्नाम जायते विन्दुरेककला कार्या वर्णान्तस्थायिनी भवेत् । विपर्ययस्वरोऽपि स्याद्यस्य दुर्घटितोऽपि न एकान्तरा तु वाद्यं तु षड्जतः परमः स्वरः । आक्षेपास्कन्दनं कार्यं काकस्येवोच्च पुष्कलम् ॥५ ॥६ ॥७ ॥८ HIE ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ - विचार भो चार प्रकार का होता है। विकल्प से आठ प्रकार कहे जाते हैं, देवगण इनकी संख्या सोलह बतलाते हैं | ५१ वर्णों के तत्त्वज्ञ लोग स्थायी, संचारो, अवरोहण तथा आरोहण - ये चार वर्ण जानते हैं | एक हो प्रकार के भाव वर्ण में जिसका संचरण होता है वह स्थायो, विभिन्न प्रकार के भावों में जिसका संचरण होता है यह संचारी, निम्न गति जिसकी होती है वह अवरोहण तथा उन्नति शील जो होता है वह आरोहण कहा जाता है-ऐसा वर्णवेत्ता लोग जानते हैं। इन्हीं चार प्रकार के वर्णों का अलंकार सुनिये ६-८ मुख्यतः अलंकार चार प्रकार के होते हैं, स्थापनी, क्रमरेजित, प्रसाद और प्रस्तार, उनके लक्षणों को बतला रहा हूँ | उष्ट्रकल नामक विकृत स्वर एक स्थान से उत्पन्न होकर दूसरे स्थान में समाप्त होते है, उस बावर्त (चक्राकार घुमाव) की उत्पत्ति और उसका क्रय ये दोनों परिणाम के अनुरूप करना चाहिये |६-१०१ अन्य कुमार नामक स्वर को अत्यल्प विस्तार करनेवाला जानना चाहिये । दूसरा अपाङ्ग नामक और मात्राधिक कुलारेक नामक अलङ्कार होता है | १ | श्येन नामक स्वर एक ही स्थान में उत्पन्न होता है, और कलामात्र के अन्तर में प्रतिष्ठित होता है । इसी स्वर में विलक्षण वृद्धि होती है | १२ | यही व्येन स्वर उत्तर अवरोह कहा जाता है। सविन्दु नामक स्वर कला-कला के परिणाम में उत्पन्न होता है | विन्दु को एक कला की करनी चाहिये, यह एक ही वर्ण के अन्त में म्थिर रहनेवाली है । स्वरों का विपर्यय ( उलट फेर) भी हो जाता है, जहां मनवधानता भी नही होती है । पड्ज से एक स्वर का अन्तर देकर एकान्तरा वाद्य करने से उत्कृष्ट स्वर होता है । इसमें काक के समान स्वर का आक्षेप करने से उच्च पुष्कल स्वर होता है |१३-१५। कार्य और कारण रूप से दोनों संतारो