पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३४

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

एकनवतितमोऽध्यायः ८१३ कि न पश्यसि रे मूढं मदमूढं विरुध्य माम् । क्व गताऽसि वरारोहे धिक्ते ( ङ्मे ) जीवितमीदृशम् ॥ अथापश्यच्च तां राजा कुरुक्षेत्रे महाबलः ॥३२ ॥३४ ॥३५ ॥३७ प्लक्षतीर्थे पुष्करिण्यां विगाढेनाम्बुनाऽऽप्लुताम् | क्रीडन्तीमप्सरोमिश्च पश्चभिः सह शोभनाम् ॥३३ अपश्यत्सा ततः सुभ्रू राजानमविदूरतः । उर्वशी ताः सखीः प्राह अयं स पुरुषोत्तमः यस्मिन्नहमवासीति ? दर्शयमास तं नृपम् । तत आविर्बभूवस्ताः पञ्चचूडाप्सरास्तु ताः दृष्ट्वा तु राजा तां प्रोतः प्रलापान्कुरुते बहुन् । आयाहि तिष्ठ मनसा घोरे वचसि तिष्ठ हे ॥३६ एवमादीनि सूक्ष्माणि परस्परमभाषत । उर्वशी त्वब्रवीच्चैलं सगर्भाऽहं त्वया प्रभो संवत्सराकुमारस्ते भविता नैव संशयः । निशामेकां तु वै राजा अवसत्तु तथा सह समहृष्टो जगामाथ स्वपुरं तु महायशाः । गते संवत्सरे राजा उर्वशीं पुनरागमत् उषित्वा तु तथा सार्धमेकरात्रं महामनाः । कामार्तश्चाब्रवीद्दीनो भव नित्यं ममेति वै उर्वश्यथाब्रवोच्चैनं गन्धर्वास्ते वरं ददुः । तं वृणीष्व महाराज ब्रूहि चैतांस्त्वमेव हि ॥३८ ॥ ३ ॥४० ॥४१ हो, हे सुन्दरी ! मेरे साथ विरोध भाव ठानकर तू कहीं चली गई, हमारे ऐसे जीवन को धिक्कार है।' इस प्रकार विलाप करते हुए उस महाबलवान् राजा ने घूमते-घूमते कुरुक्षेत्र में उसे देखा । उस समय वह सुन्दरी प्लक्ष तीर्थ में एक पुष्करिणी के गहरे जल में पाँच अन्य सुन्दरी अप्सराओं के साथ क्रीड़ा कर रही थी |३२-३३| सुन्दर भौहोंवाली उर्वशी ने सन्निकट आने पर राजा पुरूरवा को देख लिया और अपनी सखियों से कहा, अरे ! यह पुरुष श्रेष्ठ वही राजा है, जिसके साथ में निवास करती थी, ऐसा कहकर उसने राजा को दिखाया | उर्वशी के ऐसा कहने पर वे पाँचों सुन्दर अप्सराएँ जल से बाहर आ गईं । राजा ने उर्वशी को देखकर बहुत विलाप किया । उसे परम प्रसन्नता प्राप्त हुई । वह कहने लगा, हें सुन्दरी ! आओ । मन से मेरे इस कठोर हृदय में निवास करो |३४-३६ अपनी पूर्व की बातों पर स्थित रहो। इस प्रकार सूक्ष्म बातें उन दोनों परस्पर की। अन्त में उर्वशी ने पुरूरवा से कहा प्रभो ! मैं आपके संयोग से गर्भवती हूँ, एक वर्ष में तुम्हारा पुत्र मुझसे उत्पन्न होगा - इसमें सन्देह नहीं । राजा ने वहाँ एक रात फिर उर्वशी के साथ निवास किया । महान् यशस्वी पुरूरवा दूसरे दिन अत्यन्त हर्षित होकर अपने पुर को वापस आया । एक वर्ष चीत जाने पर वह पुनः उर्वशी के पास गया | महा मनस्वी पुरुरवा उस अवसर पर पुनः एक रात उवंशी के साथ निवास करने के उपरान्त कामार्त होकर दोन भाव से बोला तुम मेरे साथ सर्वदा निवास करो |३७-४०॥ उर्वशी ने राजा को प्रत्युत्तर दिया कि हे महाराज ! गन्धवंगण तुम्हें वरदान देंगे, उन्हीं से इस बात की