पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८५६

एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

त्रिनवतितमोऽध्यायः काकुत्स्थकन्यां गां नाम लेभे पत्नीं यतिस्तदा । संयातिर्मोक्षमास्थाय ब्रह्मभूतोऽभवन्मुनिः तेषां मध्ये तु पञ्चानां ययातिः पृथिवीपतिः । देवयानीमुशनसः सुतां भार्यामवाप ह शर्मिष्ठामासुरीं चैव तनयां वृषपर्वणः । अजीजनन्महावीर्यान्सुतान्देवसुतोषमान् द्रुह्यं चानुं च पुरुं च शर्मिष्ठा वार्षपर्वणी | अजीजनन्महावीर्यान्सुतान्देवसुतोपमान् रथं तस्मै ददौ रुद्रः प्रीतः परमभास्वरम् । असङ्गं काञ्चनं दिव्यमक्षयौ च महेषुधी युक्तं मनोजवैरश्वैर्येन कन्यां समुद्वहन । स तेन रथमुख्येन जिगाय च ततो महीम् ययातिधि दुर्धर्षो देवदानवमानवैः । पौरवाणां नृपाणां च सर्वेषां सोऽभवद्रथः यावत्सुदेशप्रभवः कौरवो जनमेजयः । कुरोः पुत्रस्य राज्ञस्तु राज्ञः पारिक्षितस्य ह || जगाम स रथो नाशं शापाद्गाग्र्ग्यस्य धीमतः गार्ग्यस्य हि सुतं बालः स राजा जनमेजयः । दुर्बुद्धिहिंसयामास लोहगन्धं नराधिपम् स लोहगन्धो राजषिः परिधावन्नितस्ततः । पौरजानपदैस्त्यक्तो न लेभे शर्म कहिचित् ८३५ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ।। १७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ने रूप में बरण किया था । संयाति ने मोक्ष मार्ग का आश्रय लेकर मुनयों के समान ब्रह्म पद की प्राप्ति की । १२-१४ | इन पाँचों भाइयों में ययाति पृथ्वी पति (राजा) हुआ | उसने शुक्राचार्य की देवयानी नामक कन्या से विवाह किया। असुरराज वृषपर्वा की शर्मिष्ठा नामक कन्या को भी उसने पत्नी रूप में वरण किया था। देवयानी यदु और तुर्वसु नामक दो पूत्र उत्पन्न किये । वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा ने, द्रुह्य, अनु और पुरु नामक तीन पुत्र उत्पन्न किये । इस प्रकार राजा ययाति ने इन देवताओं के समान सुन्दर एवं पराक्रमशाली, महाबलवान् पुत्रों को उत्पन्न किया |१५-१६। महादेव जी ने प्रसन्न होकर उस राजा ययाति को परम सुन्दर, चमकनेवाला, सुवर्ण निर्मित एक दिव्य रथ प्रदान किया था, इसके अतिरिक्त दो कभी नष्ट न होनेवाले तरकश भी दिये थे | उस सुन्दर रथ में मन के समान वेगशाली घोड़े जुते हुए थे | उसी रथ पर चढ़कर शुक्र की पुत्री देवयानी को साथ लेकर राजा ययाति ने समस्त पृथ्वी को जीता था । वह राजा ययाति युद्धभूमि में देवताओं, दानवों, मनुष्यों - सब से दुर्दमनीय था, समस्त पुरुवंशी राजाओं में महादेव जी का दिया गया वह महान् रथ व्यवहार में लाया जाता था । जब कुरुवंश के राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय शासनारूढ हुए, उस समय भी वह सुन्दर रथ उनके अधीन धा । वुद्धिमान् गार्ग्य के शाप से वह रथ नष्ट हुआ |१७-२१ । राजा जनमेजय ने कुबुद्धि में आकर गाग्यं के पुत्र का संहार कर दिया था, जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने नरपति जममेजय को लोहगंध, (लोहे के समान दुर्गन्धवाला . ) होने का अभिशाप दे दिया था |२२| राजर्षि जनमेजय लोहगंध होने पर इधर उधर बहुत दौड़े पर कहीं भी उन्हें शान्ति नहीं मिली, ग्राम- निवासियों ने भी उनका परित्याग कर