पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९००

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षंण्णवतितमोऽध्यायः पुत्रवत्परिपाल्यान्तो देवा देवान्यथा तदा (?) तामेव विधिनोत्पन्नामाहुः कन्या प्रजापतिम् एकादशा तु जज्ञे वं रक्षार्थ केशवस्य ह | तां वै सर्वे सुमनसः पूजयिष्यन्ति यादवाः ॥ देवदेवो दिव्यवपुः कृष्णः संरक्षितोऽनया ऋषय ऊचु: किमर्थं वसुदेवस्य भोजः कंसो नराधिषः । जघान पुत्रान्बालान्चै तन्नो व्याख्यातुमर्हसि सूत उवाच ८७६ ॥२१४ ॥२१५ ॥२१६ ॥२१७ ॥२१८ शृणुध्वं वै यथा कंसः पुत्रानानकदुन्दुभेः | जाताञ्जाताशिशून्सर्वान्निष्पिपेष वृथामतिः भयाद्यथा महाबाहुर्जातः कृष्णो विवासितः । तथा च गोषु गोविन्दः संवृद्धः पुरुषोत्तमः उक्तं हि किल देवक्या वसुदेवस्य धीमतः । सारथ्यं कृतवान्कंसो युवराजस्तदाऽभवत् ततोऽन्तरिक्षे वागासोद्दिव्या भूतस्य कस्यचित् | कंसो यथा सदा भीतः पुष्कला लोकसाक्षिणी ॥२२० यामेतां वहसे कंस रथेन परकारणात् । अस्या यः सप्तमो गर्भः स ते मृत्युर्भविष्यति ॥२२१ ॥२१६ जीवन बिताते हुए दिनानुदिन बढ़ने लगी । पुत्र की भांति उसकी पालना होने लगी। देवगण अपने में उसकी उत्पत्ति को चर्चा करने लगे । उन्होने प्रजापति ब्रह्मा से उस कन्या के बारे में विस्तार पूर्वक सब बातें बतलायीं और यह कहा कि केशव की रक्षा के लिये यह भगवती एकादशा स्वयं प्रादुर्भूत हुई है, उसकी यादव गण प्रसन्न मन से पूजा करेगे | दिव्यदेहधारी देवदेव भगवान् कृष्ण इसी भगवती एकादशा द्वारा सुरक्षित हैं | २१३-२१५॥ ऋषिवृन्द बोले – सूतजी ! भोजवंशीय राजा कंस ने किस कारण से वसुदेव के छोटे-छोटे पुत्रों का संहार किया— इसे विस्तार पूर्वक हम लोगों से बतलाइये |२१६| सूत बोले- ऋषिवृन्द ! जिस कारण से मूर्ख कंस आनकदुन्दुभि वसुदेव के उत्पन्न होनेवाले समस्त पुत्रों का तुरन्त संहार कर देता था और जिस भय के कारण महाबाहु भगवान् कृष्ण उत्पन्न होते ही दूसरी जगह पहुँचाये गये, और गौओ के बीच में जिस प्रकार पुरुषोत्तम गोविन्द का पालन पोषण हुआ उस सारी कथा को हम आप लोगों से बतला रहें है, सुनिये। ऐसा कहा जाता है कि जब कंस युवराज था, तब वसुदेव ओर देवकी का रथ हाँका करता था। एक बार जब कि वह रथ हाँक रहा था आकाश से एक ऐसी देवी वाणी किसी भूत के मुख से सुनाई पड़ी, जिसके कारण कंस सदा भीत रहने लगा। वह दिव्य वाणी कठोर स्वर से सुनाई पड़ी थी, सभी लोगों ने उसे सुना था । वह दैवी वाणी इस प्रकार की थो, 'कंस ! जिसे प्रेम वश अथवा वसुदेव को प्रसन्न करने के लिये रथ पर चढ़ाकर घुमाते