पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९६५

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६४४ वायुपुराणम् काले विचित्रवींर्यं तु दासेय्यजनयत्सुतम् । शंतनोर्दयितं पुत्रं प्रजाहितकरं प्रभुम् ॥ कृष्णद्वैपायनश्चैव क्षेत्रे वैचित्रवीर्य के धृतराष्ट्रं च पाण्डुं च विदुरे चाप्यजोजनत् । धृतराष्ट्रात्तु गान्धारी पुत्रार्णा सुठुवे शतम् तेषां दुर्योधनो ज्येष्ठः सर्वक्षत्रस्य स प्रभुः । माद्री राज्ञो पृथा चैव पाण्डोर्भार्ये वभूवतुः देवदत्ताः सुतास्ताभ्यां पाण्डोरर्थे विजज्ञिरे | धर्माद्युधिष्ठिरो जज्ञे वायोर्जज्ञे वृकोदरः इन्द्राद्धनंजयो जज्ञे शक्नतुल्यपराक्रमः | अश्विभ्यां सहदेवश्च नकुलश्चापि माद्रिजो पञ्चैव पाण्डवेभ्यश्च द्रौपद्यां जज्ञिरे सुताः । द्रौपद्यजनयज्ज्येष्ठं प्रतिविन्ध्यं युधिष्ठिरात् हिडम्बा भीमसेनात्तु जज्ञे पुत्रं घटोत्कचम् | काश्या पुनर्भीमसेनाज्जज्ञे सर्ववृकं सुतम् सुहोत्रं विजया माद्री सहदेवादजायत । कमेरत्यां तु वैद्यायां निरमित्रस्तु नाकुलिः सुभद्रायां रथी पार्यादभिमन्युरजायत । उत्तरायां तु वैराट्यां परीक्षिदभिमन्युजः परीक्षितस्तु दायादो राजाऽऽसीज्जनमेजयः । ब्राह्मणान्स्थापयामास स वै वाजसनेयिकान् ॥२४१ ॥२४२ ॥२४३ ॥ २४४ ॥२४५ ॥२४६ ।।२४७ ॥२४८ ||२४६ ।।२५० विचित्र वीर्यं नामक पुत्र को उत्पन्न किया था, जो परम प्रभावशाली, प्रजा हितंपी एवं शन्तनु को परमप्रिय था । राजा विचित्रवीर्य के क्षेत्र (पत्नी) में कृष्णद्वैपायन ने धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर नामक पुत्रों को उत्पन्न किया । इनमें धृतराष्ट्र के संयोग से गान्धारी ने सौ पुत्रों को उत्पन्न किया 1२४०-२४२। उन सो पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ पुत्र दुर्योधन था, अपने समय का वह समस्त क्षत्रिय जाति का स्वामी था । पाण्डु को माद्री और पृथा नामक दो स्त्रियाँ थीं । पाण्डु के लिये विभिन्न देवताओं से दिये गये पुत्र उन दोनों रानियों में उत्पन्न हुए | धर्म से युधिष्ठिर का जन्म हुआ, वायु से वृकोदर भीम की उत्पत्ति हुई, इन्द्र से धनंजय का जन्म हुआ, जो इन्द्र के समान हो पराक्रमशाली था, दोनों अश्विनीकुमारों के संयोग से माद्री के नकुल और सहदेव नामक दो पुत्र हुए ।२४३-२४५। पाँच पाण्डुओं के संयोग से द्रौपदी में भी पाँच ही पुत्र उत्पन्न हुए । द्रौपदी ने सबसे बड़े पुत्र प्रतिविन्ध्य को युधिष्ठिर के संयोग से उत्पन्न किया था । हिडम्बा ने भीमसेन के संयोग से घटोत्कच नामक पुत्र को उत्पन्न किया था । दूसरी पत्नी काश्या ने भीमसेन से सर्वबुक नामक पुत्र को उत्पन्न किया था | मद्र देश की राजकन्या विजया ने सुहोत्र नामक पुत्र को उत्पन्न किया था। चेदिदेश की राजपुत्री कर्मरती ने नकुल से नरमित्र नामक पुत्र उत्पन्न किया था | २४६-२४८। पार्थ के संयोग से सुभद्रा में महारथी अभिमन्यु ने जन्म धारण किया था । विराट पुत्री उत्तरा में अभिमन्यु से परीक्षित नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था । परीक्षित का उत्तराधिकारी राजा जनमेजय था । राजा जनमेजय ने वाजसनेय यज्ञ को प्रतिष्ठा करनेवाले ब्राह्मणों की मर्यादा स्थिर को थी ।२४६-२५०। वैशम्पायन ने उनके इस कार्य को सहन नहीं किया, और अमर्ष में भरकर बोले, दुर्बुद्ध !