पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/९९३

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६७२ वायुपुराणम् सवर्णा मनवस्तस्मात्सवर्णत्वं हि ते यतः । मननाम्माननाच्चैव तस्मात्ते मनवः स्मृताः चाक्षुषस्यान्तरेऽस्तीते प्राप्ते वैवस्वतस्य ह | रुचेः प्रजापतेः पुत्रो शैच्यो नामाभवत्सुतः भूत्यामुत्पादितो यस्तु भौत्यो नामाभवत्सुतः । वैवस्वतेऽन्तरे राजा द्वौ मनू तु विवस्वतः वैवस्वतो मनुर्यश्च सावर्णो यश्च विश्रुतः । ज्येष्ठः संज्ञासुतो विद्वान्मनुर्वैवस्वतः प्रभुः सवर्णायाः सुतश्चान्यः स्मृतो वैवस्वतो मनुः । सवर्णा मनवो ये च चत्वारस्तु महर्षिजा: तपसा संभृतात्मानः त्वेषु मन्वन्तरेषु वै । भविष्येषु भविष्यन्ति सर्वकार्यार्थसाधकाः प्रथमं मेरुसावर्णेर्दक्षपुत्रस्य वै मनोः | पुत्रा मरीचिगर्भाश्च सुशर्माणश्च ते त्रयः ॥ संभूताश्च महात्मानः सर्वे वैवस्वतेऽन्तरे ॥५३ ॥५४ ॥५५ ॥५६ ॥५७ ॥५८] ॥५६ ॥६० ॥६१ दक्षपुत्रस्य पुत्रास्ते रोहितस्य प्रजापतेः । भविष्यस्य भविष्यस्तु एकैको द्वादशो गणः ऐश्वर्यसंग्रहो राहो बाहुवंशस्तथैव च । पारा द्वादश विज्ञेया उतरांस्तु निबोधत वाजियो वाजिजिच्चैव प्रभूतिश्च ककुद्यया | दधिक्रावायपश्चाश्च प्रणीतो विजया मधुः तेजस्मान्नथवो ( ? ) द्वौ तु द्वादशैते मरीचयः । सुशर्मा (में) णस्तु वक्ष्यामि नामतस्तु निबोधत ॥६३ ॥६२ चारों कुमार ब्रह्मा, वर्म, दक्ष और भव के सावर्ण ( समान वर्णवाले ) घे अतः उनका सावर्ण नाम पड़ा। मानसिक मनन ( समागम की भावना ) के कारण उनको उत्पत्ति हुई थी, अतः मनु नाम से विख्यात हुए । चाक्षुष मन्वन्तर के व्यतीत हो जाने पर जब वैवस्वत मन्वन्तर का प्रारम्भ हुआ, तब प्रजापति रुचि के रोच्य नामक एक पुत्र हुआ १५३-५४/भूति नामक जननी में जो पुत्र उत्पन्न किया गया, वह भौत्य नाम से विख्यात हुआ । चैवस्वत मन्वन्तर में विवस्वान के मनु नामक दो पुत्र राजा हुए, जिनमें एक वैवस्वत मनु और दूसरे सावर्ण मनु के नाम से विख्यात हुए । इनमें एक परम ऐश्वर्यशाली विद्वान् वैवस्वत मनु ज्येष्ठ संज्ञा पुत्र और दूसरे वैववस्वत मनु सवर्ण ( छाया रूप धारिणी संज्ञा) के पुत्र कहे जाते हैं। सवर्ण जो चार मनु गण हुए वे महर्षियों से उत्पन्न हुए थे १५५-५७१ ये सभी मनुगण परम तपोनिष्ठ थे । ये भविष्यत् कालीन अपने अपने मन्वन्तरों में समस्त कार्यो मे समर्थ होकर विराजमान होगे | प्रथम मनु दक्षपुत्र मेरु सार्वाण थे, उनका दूसरा नाम प्रजापति रोहित था । ये भविष्य मन्वन्तर के भावी मनु होंगे | इनके वैवस्वत मन्वन्तर में अनेक महात्मा पुत्र हुए, जिनके गणों के नाम मरीचिगर्भा, सुशर्मा और पार हुए। इनमें से एक एक गण बारह भागो में विभक्त है |५८-६० ऐश्वयं संग्रह, राह, बाहुवंश आदि को पारगण के अन्तर्गत जानना चहिये | अन्यान्य गणों का विवरण सुनिये । वाजिय, वाजिजित, प्रभूति, ककुद्यया, दधिक्राव, अयपक्व, प्रगीत, विजय, मधु, तेजस्वान् और अथर्वद्वय – ये बारह मरीचिमण अघीन थे । सुशर्मागण का विवरण