पुटमेतत् सुपुष्टितम्
२३
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
३६ | सिद्धार्थवचनम् | .... .... ३६० |
३७ | वसिष्ठाक्रोशः | .... .... ३६७ |
३८ | दशरथाक्रोशः | .... .... ३७५ |
३९ | वनगमनाऽऽपृच्छा | .... .... ३८० |
श्लोकसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | |
३६ | ||
एवमुक्ताऽपि कैकेयी न चचाल स्वनिश्चयात् ॥ | ....३६१ | |
९१ | भूयो निर्बन्धयामास राजानं क्रोधमूर्छिता । | ....३६३ |
सिद्धार्थेनापि सा प्रोक्ता न चचाल स्वनिश्चयात् ॥ | .... ३६५ | |
३७ | ||
९२ | रामस्तु त्वरयामास वनवासाय निश्चितः । | .... ३३७ |
कैकेयीं प्रार्थयामास कुशचीरे च राघवः ॥ | .... ३६९ | |
९३ | कैकेयी चापि निर्लज्जा तेभ्यश्चीराण्युपाददे । | ....३७१ |
वसिष्टस्तु तदा क्रुद्धो गर्हयामास कैकयीम् ॥ | .... ३७३ | |
३८ | ||
९४ | विललाप जनस्सर्वः दृष्ट्वा तान् चीरवाससः । | ....३७५ |
राजानं निन्दयामासुः जना बहुविधं तदा ॥ | .... ३७७ | |
९५ | कौसल्यां वीक्षयस्वेति रामो राजानमब्रवीत् । | .... ३७९ |
३९ | ||
सुमन्त्रस्त्वानयामास रथं राजाज्ञया तदा ॥ | .... ३८१ | |
९६ | कौसल्या प्रशशंसाथ सीतां रामानुगामिनीम् । | .... ३८३ |
सीताऽपि सान्त्वयामास कौसल्यां धीरया गिरा ॥ | .... ३८५ | |
९७ | आपृच्छन्मातरः सर्वाः रामः संप्रस्थितो वनम् । | .... ३८७ |