एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

वा (सनहित ? है। ८१ अथ लम्वगुणं भूम्यर्थं स्पष्टं त्रिभुजे फलं भक्त्याचार्यविधिना क.ए .लए A मग = == ३३क अर्थ के . रूप । युर्वेNA असंक= - अइ . प ५. मग असग सर्वथोगे --- अ + क ' ग। अझरा = प मT=म x ऊह = त्रिज्ञ अथ क्षेत्रमिया मगए, नगह त्रिभुजयोः सजलया मय शह . पग ४ गुहा , न्ह प्राप्त नहीं अप एवमेव कनह, कनद त्रिभुजयोः सजहित्य-- दष्ट है =<--.': स परा • ॐ द्व ह = कप वह = अष . कप फुटं अप ..संघ * • कहीं = कण न प • गह .’, मपरे . कह = • गह . अह = त्रिफल कम ए परब्रवन्न कप = कह-एह=कटु=* = स-र्भ पग =कहीं-अक= कह-क = स-क एवमेव गहू =ह-क्रम =व्ह-ग = स- क्ह् = स ..त्रेिफ * =स (स-अ ) (स- ) ( - ) अस्य मूलं फलं भवत्युपपन्नं यश्रतम् । अत्रैव अझ त्रिभुजे सरल त्रिकोणमित्था लधर्मम् = क • ३ण <अकर, अश्न त्रिज्यारूपमिता ग्रY । तत्र त्रिभुजफलम् । लं . र के - ग • ज्य <अकरा इत्यपि भवति । = = == एतेन-भुजमध्यगौणस्थ जीबा दोघृतसंगु । दलिताऽन्यप्रकारेण फलं वा स्याल्त्रिोणके इति पद्यमुपपन्नं भवति ।

"https://sa.wikisource.org/w/index.php?title=पृष्ठम्:लीलावती.pdf/९२&oldid=162506" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्