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भाषा

 लङ्का के पास के समुद्र में से उत्पन्न यह लक्ष्मी, राक्षसी के समान रक्त रूपी सुरा से 'तृप्त होती है। परन्तु यह तुम्हारे भुजदण्ड से बँध जाने पर विनम्र हो जाएगीं । अर्थात् लङ्का में उत्पन्न राक्षसी जिस प्रकार रक्त पान कर तृप्त होती है वैसे ही यह लङ्का के समीपवर्ती समुद्र से उत्पन्न होने वाली लक्ष्मी रक्त प्रवाह से तृप्त होती है । यह लक्ष्मी तुम्हारे भुजाओं के दण्ड से दण्डित होकर या तुम्हारी भुजा के आश्रय में आने पर भविष्य में नम्र हो जाएगी ।

जानामि मार्गं भक्तोपदिष्टं ममापि चालुक्यकुले प्रसूतिः ।
किन्त्वत्रलक्ष्मीर्गुणवन्धहीने निसर्गलोला कथमेति दार्ढ्यम् ॥४८

अन्वयः

 भवता उपदिष्टं सर्गं जानामि । (यतः)मम अपि चालुक्यकुले प्रसूतिः । किन्तु गुणबन्धहीने अत्र निसर्गलोला लक्ष्मीः कथं दाढर्चम् एति ।

व्याख्या

 भवतोपदिष्ट कथित मार्गं नयवर्त्मं जानामि वेयि । यतो ममाऽपि चलु क्यवंशे नीतिमार्गावलम्बिनि चालुक्यनृपाणां कृते प्रसूतिरुत्पत्तिः । अहमपि त्वत्सदृशो नीतिमार्गकुशले चालुक्यवंशे जात इति त्वदुक्तं सर्वं नयवर्त्म जानामीति भावः । किन्तु परन्तु गुणाना शौर्यादीना पक्षे रज्जूनां बन्धः संघः पक्षे ग्रन्थियिस्तेन हीने रहितेऽत्र अस्मिन् ज्येष्ठे पुत्रे सौमदेचे निसर्गात्स्वभावादेव लोला चञ्चलाऽस्थिरा लक्ष्मी राज्यश्रीः क्रयं केन प्रकारेण दढियें दृढ़तां स्थिरतामित्यर्थः । एत प्राप्नोति समुपमास्यतीति भावः । दृढबन्धनेन बद्ध एव पदार्थो निश्चलो भवतीति नियमः।

भाषा

 तुमने जो नीलिमार्ग दिखाया है उसे में भी जानता हूं। क्यो हि मे भी जन्म नीति कुशल चालुक्य राजाओ के वंश में ही हुआ है । परन्तु शौर्यादिगुणो के संध से रहित अथवा बधन् योग्य थियुक्त रस्सी से रहित मेरे ज्येष्ठपुत्र सोमदेव के युवराज पद पर बैठने पर यह स्वभावत चञ्चला राज्यलक्ष्मी इससे