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भाषा

 जिस राजा के खड्ग के तीक्ष्ण और अथाह धारा जल में समुद्र में इन्द्र के वज्र के भय से खूब नीचे डुब्की लगाकर छिपे हुवे पर्वतो से समान अन्य राजाआ के कुटुम्बो वे निमग्न अर्थात् नष्ट हो जाने पर भी घारा नगरी के दुर्भाग्य से वह खड्ग एव छोटे धरा प्रवाह के समान मालवा के राजा भोज की राजधानी धारा नगरी को न छोड सका। अर्थात् अनेक बडे २ रजाओ को जीत लेने पर भी छोटी सी धारा नगरी को जीतने से वह अपने को न रोक सका ।


निःशेषनिर्वासितराजहंसः खड्गेन बालाम्बुदमेचकेन ।
भोजक्षमाभृद्धृजपञ्जरेऽपि यः कीर्तिहंसीं विरसीचकार ।।४३।।

अन्वयः


 बालाम्बुदमेचकेन खङेन नि:शेषनिर्वासितरजहंस: भोजक्षमाभॄदभुजपञ्जरे अपि कीर्तिहसीं विरसीचकार ।

व्याख्या

 बालाम्बुद नूतनमेघो कृष्णवर्णमेघस्तद्वन्मेचकेन श्यामेन खङ्गेन कृपाणेन निश्शेष यथा स्यात्तथा निर्वासिता स्वनिवासाद्वहि कृत राजहंसा राजानो हंसा इवेति राजहंसा राजश्रेष्ठा पक्षे मानस प्रापिता राजहंसपक्षिणो येन स । य आहवमल्लदेवो नाम राजा भोजनामा क्षमाभूद्राजा तस्य भुज पञ्जर इव तस्मिन् सर्वसुखसामग्रीनिधानेऽपि कीर्तिरुपिणी हसीं पतिवियोगाद्विरसीचकार दुःखसगर निमग्ना चकार । भोजराजा कीर्तिरपि निराधारा सती दुःखिता जाता । वर्षा काले मानस यान्ति हंसा इति प्रसिध्यनुरोधान्मेघान्विलोक्य हसा स्वस्थान त्यजन्ति मानसञ्च गच्छन्ति । बालाम्बुदेन खङ्स्य सादृश्यादुपमा । राजसु राजहपक्षिणामभेजारोपात्कीर्तो द्वीपाः अभेदारोपाद्भोजराजभ्रो पञ्जरभेदा रोपाच्च सावयवरूपकम् ।

भाषा

जिसने नवीन मेघ के समान कृष्णवर्ण खङ से समस्त राजारूपी राजहंसो को भगा दिया था (मधो को देखकर हंसपक्षी मानस सरोवर चले जाते है एसी प्रसिद्धि है) उसने भोजराज के भुज़ारूपी पिंजड़े में सुरक्षित उसकी कीर्तिरुपी