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वेदान्तसारः

स भगवः कस्मिन्, ८८ छान्दो. उ. ७-२४-१.
समयाविषिते सूर्ये, ३०५ तै. सं. ६-६-११.
समस्तकल्याणगुणात्मकः, २६२ वि. पु. ६-५-८४.
समाध्यभावाच, १३ ब्र. सू. २-३-३९.
सप्त प्राणाः, २२५ मु. उ. २-१-८.
स यदि पितृलोक, ४०५ छान्दो. उ. ८-२-१.
सर्गेऽपि नोपजायन्ते, ९८ भ. गी. १४-२.
सर्व खल्विदं ब्रह्म, ६०, २७८ छान्दो. उ. ३-१४-१.
सर्वस्य चाहं हृदि, ६३, २१५, ३८६ भ. गी. १५-१५.
सर्वस्य वशी, ३१७ बृ. उं. ४-४-२२.
सर्वस्याधिपतिः, ११५ बृ. उ. ४-४-२२.
सर्वाणि ह वा, ४७ छान्दो. उ. १-९-१.
सर्वान् कामांश्छन्दतः, २५६ कठ. उ. १-१-२५.
सर्वे चैते वशं यान्ति, २४७.
सर्वेन्द्रियैर्मनसि, ३७८.
सर्वेषां तु स नामानि, १०२ मनु. १-२-२१.
स वा एष पुरुषः, ३५. बृ. उ. २-५-१८.
स वा एष महान्, २०४ बृ. उ. ४-४-२२.
स स्वराड् भवति, ३०९ छान्दो. उ. ७-२५-२.
सह नाववतु, ३०३ तै. उ. १.२-१.
सहस्रशीर्ष देवं, ३२१ तै. उ. २-११-१.
स ह्यनादिरनन्तश्च, १८९ पाञ्चरात्रे
स हि कर्ता, २५७ बृ. उ. ४-३-१०.
सा काष्ठा सा परा, ११८ कठ. उ. १-३-११.
साक्षाच्चोभयाम्नानात् ८ ब्र. सू. १-४-२५.
साधुकारी साधुर्भवति, १६१ बृ. उ. ४-४५.
सुकृतदुष्कृते धूनुते, ३०७ कौ. उ. १-३७.