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भाषाटीकासहिता। ८९

जिस पुरुषने इस प्रकार आत्मस्वरूपको साधनोंके द्वारा सर्वक्रियारहित किया है वह कृतार्थ है और जो विना साधनोंकेही स्वभावसे क्रियारहित शुद्ध आत्मस्वरूपके ज्ञानवाला है, उसके कृतार्थ होनेमें तो कहनाही क्या है॥८॥

इति श्रीमदृष्टावक्रमुनिविरचितायां ब्रह्मविद्यायां भाषाटीकया सहितमेवमेवाष्टकं नाम द्वादशं प्रकरणं समाप्तम् ॥ १२॥

अथ त्रयोदशं प्रकरणम् १३.

अकिञ्चनभवंस्वास्थ्यं कौपीनत्वेऽपिदुर्लभम्।

त्यागादानेविहायास्मादहमासेयथासुखम् १

अन्वयः-कौपीनत्वे अपि अकिञ्चनभवम् स्वास्थ्यम् दुर्लभम् , अस्मात् अहम् त्यागादाने विहाय यथासुखम् आसे ॥ १॥

अब जीवन्मुक्ति अवस्थाका फल जो परम सुख तिसका वर्णन करते हैं, संपूर्ण विषयोंके विषं आसक्तिका त्याग करनेसे उत्पन्न होनेवाली चित्तकी स्थिरता, कोपीनमात्रमें आसक्ति करनेसेभी नहीं प्राप्त होती है, इस कारण मैं त्याग और ग्रहणके विषं आसक्तिका त्याग करके सर्वदा सुखरूपसे स्थित हूं ॥१॥