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भाषाटीकासहिता। ९७

अन्वयः-विषयवैरस्यम् मोक्षः, वैषयिकः रसः बन्धः विज्ञानम् एतावत् एव; यथा इच्छसि तथा कुरु ॥ २॥

अब बंध और मोक्षका स्वरूप दिखाते हैं कि, विष- योंके विषं आसक्ति न करना यही मोक्ष है और विषयोंमें प्रति करना यही बंधन है, इतनाही गुरु और वेदांतके वाक्योंसे जानने योग्य है, इस कारण हे शिष्य ! जैसी तेरी रुचि हो वैसा कर ॥२॥

वाग्मिप्राज्ञमहोद्योगंजनं मूकजडालसम् ।

करोतितत्त्वबोधोऽयमतस्त्यक्तो बुभुक्षुभिः३

अन्वयः-अयम् तत्त्वबोधः वाग्मिप्राज्ञमहोद्योगम् जनम् मूकज- डालसम् करोति अतः बुभुक्षुभिः त्यक्तः ॥ ३॥

अब इस बातका वर्णन करते हैं कि, तत्वज्ञानके सिवाय किसी अन्यसे विषयासक्तिका नाश नहीं हो सकता है, यह प्रसिद्ध तत्वज्ञान वाचाल पुरुषको मूक (गूंगा) कर देता है, पण्डितको जड कर देता है, परम उद्योगी पुरुषकोभी आलसी कर देता है, क्योंकि, मनके प्रत्यगात्माके विषे लगनेसे ज्ञानीकी वाणी मन और शरीरकी वृत्तिये नष्ट हो जाती हैं इस कारणही विषय- भोगकी लालसा करनेवाले पुरुषोंने आत्मज्ञानका अनादर कर रखा है ॥३॥