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भाषाटीकासहिता। ११९

सर्वत्र दृश्यते स्वस्थः सर्वत्र विमलाशयः ।

समस्तवासनामुक्तो मुक्तः सर्वत्र राजते ॥ ११ ॥

अन्वयः-मुक्तः सर्वत्र स्वस्थः सर्वत्र विमलाशयः ( च ) दृश्यते; ( तथा ) समस्तवासनामुक्तः ( सन् ) सर्वत्र राजते ॥ ११॥

जीवन्मुक्त ज्ञानी पुरुष सुख दुःखादि सर्वत्र स्वस्थ चित्त रहनेवाला और शत्रु मित्र आदि सबके विषं निर्मल अंतःकरणवाला (समदर्शी ) दीखता है और संपूर्ण वासनाओंसे रहित होकर सब अवस्थाओंके विर्षे आत्मस्वरूपके विषं विराजमान होता है ॥११॥

पश्यन् शृण्वन् स्टशन जिघनश्नन्गृह्णन्वदन् वजन् ।

ईहितानीहितैर्मुक्तो मुक्त एव महाशयः ॥ १२॥

अन्वयः-पश्यन् शृण्वन् स्पृशन् जिवन् अनन् गृह्णन् वदन वजन ( आप ) ईहितानीहितः मुक्तः महाशयः मुक्तः एव ॥ १२॥

देखता हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, सूंघता हुआ, ग्रहण करता हुआ, भोजन करता हुआ, कथन करता हुआ तथा गमन करता हुआभी इच्छा और द्वेषसे रहित ब्रह्मके विषं चित्त लगानेवाला मुक्तही है ॥१२॥