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भाषाटीकासहिता। १२५

अन्वयः-अखिलान् अर्थान् अर्जयित्वा पुष्कलान् भोगान आप्नोति, सर्वपरित्यागमन्तरेण सुखी नहि भवेत् ॥ २॥

यहां शांतसंकल्पस्वरूपकोही सुखरूप कहा, तिस कारण शंका होती है कि, धनी पुरुषभी तो सुखी होता है फिर शांतसंकल्पकोही सुखरूप किस प्रकार कहा ? तिसका समाधान करते हैं कि पुरुष धन, धान्य, स्त्री और पुत्र आदि अनेक पदार्थों को प्राप्त करके अनेक प्रकारके भोगोंकोही भोगता है, सुखरूप नहीं होता है, क्योंकि उन भोगोंके नष्ट होनेपर फिर दुःख प्राप्त होता है, इस कारण संपूर्ण संकल्पविकल्पोंका त्याग किये विना सुखरूप कदापि नहीं हो सकता ॥२॥

कर्तव्यदुःखमार्तण्डज्वालादग्धान्तरात्मनः ।

कुतः प्रशमपीयूषधारासारमृते सुखम् ॥३॥

अन्वयः-कर्त्तव्यदुःखमार्तण्डज्वालादग्धान्तरात्मनः प्रशमपीयू- पधारासारम् ऋते सुखं कुतः ? ॥ ३ ॥

मिथ्यारूप जो संकल्प विकल्प है उनको तुच्छ जाननाही संकल्पविकल्पका त्याग है, जैसे वंध्यापुत्रको मिथ्यारूप जान लेनाही त्याग है क्योंकि मिथ्यारूप वस्तुका अन्य किसी प्रकारका त्याग नहीं हो सकता, यह विषय अन्य रीतिसे दिखाते हैं नाना प्रकारके जो