भाषाटीकासहिता। १२९
आत्मा ब्रह्मेति निश्चित्य भावाभावौ च कल्पितौ ।
निष्कामः किं विजानाति किं ब्रूते च करोति किम्॥८॥
अन्वयः-आत्मा ब्रह्म, भावाभावौ च कल्पितौ इति निश्चित्य निष्कामः ( सन् ) किं विजानाति, किं ब्रूते, किं च करोति ॥८॥
संपूर्ण कल्पनामात्र है, इस ज्ञानका मूल कारण जो तत्त्वंपदार्थका ऐक्यज्ञान उसीको कहते हैं कि, आत्मा कहिये, जीवात्मा जो त्वम् ' पदार्थ है और ब्रह्म तत्प- दार्थ है, ये दोनों अभिन्न हैं और अधिष्ठानरूप ब्रह्मका साक्षात्कार होनेपर भाव, अभावरूपसंपूर्ण घटादि दृश्य पदार्थ कल्पित हैं ऐसा निश्चय करके निष्काम होता हुआ ज्ञानी क्या जानता है क्या कहता है ? और क्या करता है ? अर्थात् मनके ब्रह्माकार होनेके कारण न कुछ जानता है, न कुछ कहता है, और न कुछ करता है किंतु आत्मस्वरूमें स्थित होता है ॥८॥
अयं सोऽहमयं नाहमिति क्षीणा विकल्पनाः ।
सर्वमात्मेति निश्चित्य तूष्णीभूतस्य योगिनः॥९॥
अन्वयः-सर्वम् आत्मा इति निश्चित्य तूष्णीभूतस्य योगिनः अयम् सः अहम्, अयम् अहम् न इति विकल्पनाः क्षीणा: (भवन्ति) ॥९॥