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भाषाटीकासहिता। १३१

स्वाराज्ये भैक्ष्यवृत्तौ च लाभालाभे जने वने ।

निर्विकल्पस्वभावस्य न विशेषोऽस्ति योगिनः॥११॥

अन्वयः-निर्विकल्पस्वभावस्य योगिनः स्वाराज्ये मैक्ष्यवृत्ती लाभालाभे जने वने च विशेषः न अस्ति ॥ ११॥

संकल्प और विकल्पसे रहित है स्वभाव जिसका ऐसे योगी (ज्ञानी) को स्वर्गका राज्य मिलनेसे, प्रारब्ध- कर्मानुसार प्राप्त हुए वस्तुसे तथा जनसमूहमें निवास होनेसे कुछ प्रसन्नता नहीं होती है और भिक्षा मांगकर निर्वाह करनेसे, किसी पदार्थकी प्राप्ति न होनेसे तथा निर्जन स्थानमें रहनेसे कुछ अप्रसन्नता नहीं होती है, क्योंकि उसका मन तो ब्रह्माकार होता है ॥११॥

क्व धर्मः क्व च वा कामः क्व चार्थः क्व विवेकिता।

इदं कृतमिदं नेति द्वन्द्वैर्मुक्तस्य योगिनः॥१२॥

अन्वयः-इदम् कृतम्, इदम् न ( कृतम् ), इति द्वन्द्वैः मुक्तस्य योगिनः धर्मः क्व, कामः च क्व, अर्थः क्व वा विवेकिता च क्व ॥१२॥

यह किया, यह नहीं किया इत्यादि द्वंद्वोंसे रहित योगीको धर्म कहां, काम कहां, अर्थ कहां और मोक्षका उपायरूप ज्ञान कहां ? क्योंकि जब धर्मादिका कारण