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भाषाटीकासहिता। १३७

अन्वयः-असंसारस्य तु के, अपि हर्षः न (भवति ), विषादता (च) न (भवति) नित्यम् शीतलमनाः सः विदेहः इव राजते॥२२॥

जिसके संसारके हेतु संकल्प विकल्प दूर हो जाते हैं, उस असारी पुरुषको न हर्ष होता है न विषाद होता है अर्थात उसके चित्तमें हर्ष आदिछः उर्मि नहीं उत्पन्न होती हैं, वह नित्य शीतल मनवाला मुक्तकी समान विराजमान होता है ॥२२॥

कुत्रापिन जिहासास्ति नाशोवापि न कुत्रचित् ।

आत्मारामस्य धीरस्य शीतलाच्छतरात्मनः॥२३॥

अन्वयः-शीतलाच्छतरात्मनः आत्मारामस्य धीरस्य कुत्र अपि जिहासा न (अस्ति) वा कुत्रचित् अपि नाशः न (अस्ति) ॥२३॥

जो पुरुष आत्माके विर्षे रमण करता है, वह धीर- वान होता है और उस पुरुषका अंतःकरण परम पवित्र और शीतल होता है उसको किसी वस्तुके त्यागनेकी इच्छा नहीं होती है, और किसी वस्तुके ग्रहण करने कीभी इच्छा नहीं होती है, क्योंकि उस ज्ञानीके राग द्वेषका लेशमात्रभी नहीं होता है और उस ज्ञानीको कहीं अनर्थभी नहीं होता है, क्योंकि अनर्थका हेतु जो अज्ञान सो उसके विषे नहीं होता है ॥२३॥