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भाषाटीकासहिता। १४५

नाप्नोति कर्मणा मोक्षं विमूढोऽभ्यासरूपिणा ।

धन्यो विज्ञानमात्रेण मुक्तस्तिष्ठत्यविक्रियः॥३६॥

अन्वयः विमूढः अभ्यासरूपिणा कर्मणा मोक्षम् न आप्नोति धन्यः विज्ञानमात्रेण अविक्रियः मुक्तः तिष्ठति ॥ ३६॥

जो पुरुष देहाभिमानी है वह योगाभ्यासरूप कर्म करके मोक्षको नहीं प्राप्त होता है क्योंकि, कर्ममात्रसे मोक्षप्राप्ति होना दुर्लभ है. सोई श्रुतिमेंभी कहा है कि "न कर्मणा न प्रजया धनेन त्यागेनैके अमृतत्वमा- नशुः " योगाभ्यास आदि कर्मसे मोक्ष नहीं होता है, संतान उत्पन्न करनेसे मोक्ष नहीं होता है, धन प्राप्त करनेसे मोक्ष नहीं होता है, यदि किन्ही ज्ञानियोंको मोक्षकी प्राप्ति हुई है तो देहाभिमानके त्यागसेही हुई है इस कारण कोई भाग्यवान् विरला पुरुषही आत्मज्ञानकी प्राप्तिमात्रसे त्याग दिये हैं संपूर्ण संकल्प विकल्पादि जिसने ऐसा होकर मुक्त हो जाता है ॥ ३६॥

मूढो नाप्नोति तद्ब्रह्म यतो भवितुमिच्छति।

अनिच्छन्नपि धीरो हि परब्रह्मस्वरूपभाक्॥३७॥

अन्वयः-यतः मूढः ब्रह्म मतिम इच्छ त ( अन ) नत् न । आप्नोति हि धीरः अनिच्छन् अपि पर कह रूपक भवति॥३७॥