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भाषाटीकासहिता। १६५ अविनाशी संतापरहित ऐसे आत्मस्वरूपका जिसको ज्ञान हुआ है ऐसे ज्ञानीको विद्या (शास्त्र ) कहां ? और विश्व कहां ? और देह कहां ? तथा अहंममभाव कहाँ ? क्योंकि उसको आत्मासे भिन्न अन्य स्फुरणही नहीं होता है ॥ ७४॥ निरोधादीनि कर्माणिजहाति जडधी- यदि। मनोरथान्प्रलापांश्च कर्तुमानो- त्यतत्क्षणात्॥७९॥ अन्वयः-जडधीः यदि निरोधादीनि कर्माणि जहाति ( तर्हि ) अतत्क्षणात् मनोरथान प्रलापान च कर्तुम् आनोति ॥ ७५ ॥ जो मूढबुद्धि देहाभिमानी पुरुष है वह अति परिश्रम करके मनका निरोध करता है परंतु निरोध समाधिके छूटतेही उसका मन फिर तुरंतही अनेक प्रकारसे संकल्प विकल्प करने लगता है और प्रलाप आदि संपूर्ण व्यापारोंको करने लगता है इस कारण ज्ञानके विना निरोध कुछ काम नहीं देता है ॥ ७५ ॥ मन्दः श्रुत्वापि तद्वस्तु न जहाति वि- मूढताम् । निर्विकल्पो बहियत्नादन्त- विषयलालसः॥७६॥