पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१८१

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भाषाटीकासहिता। १६९ जो पुरुष कामनाशून्य ज्ञानी है वह किसी शांत पुरु- षको देखकर प्रशंसा नहीं करता है और दुष्टको देखकर निंदा नहीं करता है क्योंकि वह अपने ज्ञानरूपी अमृ- तसे तृप्त होता है तिस कारण सुखदुःखकी कल्पना नहीं करता है, तथा किसी कृत्यको नहीं देखता है ॥ ८२ ॥ धीरो न द्वेष्टि संसारमात्मानं न दिदृक्षति । हर्षामर्षविनिर्मुक्तो न तोनचजीवति॥८३॥ अन्वयः-हर्षामर्षविनिर्मुक्तः धीरः संसारम् न देटि; आत्मानम् न दिदृक्षति; न मृतः ( भवति ); न च जीवति ॥ ८३ ॥ जो धैर्यवान अर्थात् ज्ञानी है वह संसारका द्वेष नहीं करता है तथा आत्माको देखनेकी इच्छा नहीं करता है, क्योंकि वह स्वयंही आत्मस्वरूप है इस कारण उसको हर्ष तथा शोक नहीं होता है और जन्ममरणरहित होता है॥ ८३॥ निःस्नेहः पुत्रदारादौ निष्कामो विष- येषु च । निश्चिन्तःस्वशरीरेऽपि नि- राशः शोभते बुधः॥ ८४॥ अन्वयः-पुत्रारादी निःस्नेहः, विषयेषु च निष्कामः, स्वशरीरे मपि निश्चिन्तः; निराशः, बुधः शोभते ॥ ८४ ॥ पुत्र स्त्री आदिके विषेप्रीति न करनेवाला, विषयोंके भागकी इच्छारहित और अपने शरीरके विषेभी भोज-