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भाषाटीकासहिता। १७३ अन्वयः-यस्य मावेषु शोमनाशीमना मतिः गलिता, (एता- हुशः यः) निष्कामः सः भिक्षुः वा अपि वा भूपतिः शोभते॥९॥ जिस ज्ञानीकी शुभ पदार्थोंमें इच्छा बुद्धि नहीं होती है और अशुभ पदार्थोंमें द्वेषबुद्धि नहीं होती है ऐसा जो कामनारहित ज्ञानी है वह राजा हो तो विदेह ( जनक) समान शोभित होता है और भिक्षु होय तो परम ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवल्क्यमुनिकी समान शाभाको प्राप्त होता है क्यों कि आत्मानदके विषे मन पुरुषको राज्य बंधन नहीं करता है और त्याग माक्षदायक नहीं होता है । ९१॥ कस्वाच्छन्ध कसंकोचःकवा तत्व- विनिश्चयः । निर्व्याजाजवभूतस्व चरितार्थस्य योगिनः॥१२॥ अन्वयः-नियाजावभूतस्य चरितार्थस्य योगिनः स्वान्छन्धम् क सङ्कोचः क वा तत्त्वांवनिश्चयः क ॥ ९२ ॥ जिस पुरुपका मन कपटरहित और कोमलतायुक्त है और जिसने आत्मज्ञानरूपी कार्यको सिद्ध किया है, ऐसे जीवन्मुक्त पुरुषको स्वाधीनपना नहीं होता है और पराधीनपनाभी नहीं होता है, तत्वका निश्चय करनाभी नहीं होता है, क्योंकि उसका देहाभिमान दूर हो जाता है ॥ ९२ ॥