पृष्ठम्:AshtavakraGitaWithHindiTranslation1911KhemrajPublishers.djvu/१९३

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भाषाटीकासहिता। १८१ अवस्था नहीं होती है, क्योंकि यह तीनों अवस्था बुद्धिकी हैं, आत्माकी नहीं हैं, मेरी तुरीयावस्थाभी नहीं होती है तथा अंतःकरणधर्म जो भय आदि सोभी मुझे नहीं होता है ॥५॥ क दूरंक समीपं वा बाह्य काभ्यन्तरं कवाक स्थूलंकच वा सूक्ष्म स्वम- हिन्नि स्थितस्य मे॥६॥ अन्वयः-स्वमहिम्नि स्थितस्य मे दूरम् क वा समीपम् क्व, बाह्यम् क वा आभ्यन्तरम् क, स्थूलम् क्व वा सूक्ष्मम् च व ॥ ६ ॥ दूरपना, समीपपना, बाहरपना, भीतरपना, मोटापना तथा सूक्ष्मपना ये सब मेरे विषे नहीं हैं क्योंकि मैं तो सर्वव्यापी आत्मस्वरूपमें स्थित हूं॥६॥ जिगाट क मृत्यु वितं वा व लोकाः कास्य क लौकिकम् । क लयः व समाधिवा स्वमहिम्नि स्थितस्य मे ॥ ७॥ अन्वयः-स्वमहिम्नि स्थितस्य अस्य मे मृत्युः क्व, जीवितम् क, लोकाः क्व वा लौकिकम् क्व, लयः क्व वा समाधिः क्व ॥ ७॥ आत्मस्वरूपके विषं स्थित जो मैं तिस मेरा मरण नहीं होता है, जीवन नहीं होता है, क्योंकि मैं तो त्रिकालमें सत्यरूपह, केवल आत्मामात्रको देखनेवाला जो में तिस मुझे भू आदि लोकोंकी प्राप्ति नहीं होती है