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२६ अष्टावक्रगीता।

धान करते हैं कि, लिंगशरीर, कारणशरीर, तथास्थूल- शरीरसहित संपूर्ण विश्व है तहां गुरु शास्त्रके उपदेशके अनुसार त्यागकरके और उन गुरु शास्त्रकी कृपासे चातु- यताको प्राप्त हुआ हूं तिस कारण परम श्रेष्ठ आत्मा जाननमें आता है अर्थात् अध्यात्म वेदान्तविद्या प्राप्त होती है ॥३॥

यथानतोयतोभिन्नास्तरङ्गाःफेनबुद्धदाः।।

आत्मनोनतथाभिन्नविश्वमात्मविनिर्गतम्४॥

२ अन्वयः-यथा तोयतः तरङ्गाः फेनवुद्धदाः भिन्नाः न तथा आत्मविनिर्गतम् विश्वम् आत्मनः भिन्नम् न ॥ ४॥

शरीर तथा जगत् आत्मासे भिन्न होगा तो द्वैत- भाव सिद्ध हो जायगा, ऐसी शिष्यकी शंका करनेपर उसके उत्तरमें दृष्टांत कहते हैं कि, जिस प्रकार तरंग, झाग बुलबुले जलसे अलग नहीं होते हैं परंतु उन तीनोंका कारण एक जलमात्र है तिसही प्रकार त्रिगुणा- त्मक जगत् आत्मासे उत्पन्न हुआ है आत्मासे भिन्न नहीं है जिस प्रकार तरंग, झाग और बुलबुलोंमें जल व्याप्त है तिसही प्रकार सर्व जगत्में आत्मा व्यापक है, आत्मासे भिन्न कुछ नहीं है ॥४॥

तंतुमात्रोभवेदेवपटोयद्विचारितः॥

आत्मतन्मात्रमेवेदंतद्विश्वविचारितम् ॥५॥