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भाषाटीकासहिता। २७

अन्वयः-यदत विचारितः पटः तंतुमात्रः एव भवेत् तद्वत् विचारितम् इदम् विश्वम् आत्मतन्मात्रम् एव ॥५॥

। सर्व जगत् आत्मस्वरूप है तिसके निरूपण करनेके अर्थ दूसरा दृष्टांत कहते हैं कि, विचारदृष्टिके विना देखे तो वस्त्र सूत्रसे पृथक् प्रतीत होता है, परंतु विचा- रदृष्टि से देखनेपर वस्त्र सूत्ररूपही है, इसी प्रकार अज्ञा- नदृष्टिसे जगत् ब्रह्मसे भिन्न प्रतीत होता है, परंतु शुद्ध- विचारपूर्वक देखनसे संपूर्ण जगत् आत्मरूपहीं है, सिद्धांत यह है कि, जिस प्रकार वस्त्रमें सूत्र व्यापक है, तिसी प्रकार जगत्में ब्रह्म व्यापक है॥५॥

यथैवेक्षुरसेकृप्तातेनव्याप्तवशकरा ॥तथा

विश्वमयिकृप्तमयाव्याप्तनिरन्तरम् ॥६॥

अन्वयः-यथा इक्षुरसे क्लृप्ता शर्करा तेन एव व्याप्ता तथा एक मयि कृप्तम् विश्वम् निरन्तरं मया व्याप्तम् ॥ ६ ॥

आत्मा संपूर्ण जगत्में व्यापक है इस विषयमें तीसरा दृष्टांत दिखाते हैं, जिस प्रकार इक्षु (पौंडा) के रसके विषयमें शर्करा रहती है और शर्कराके विषयमें रस व्याप्त है, तिसी प्रकार परमानंदरूप आत्माके विष- यमें जगत् अध्यस्त है और जगतके विषयमें निरंतर आत्मा व्याप्त है, तिस कारण विश्वभी आनंदस्वरूपही है। तिस करके “ अस्ति, भाति, प्रियम्, ” इस प्रकार आत्मा सर्वत्र व्याप्त है ॥६॥