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भाषाटीकासहिता। ३९

समाधान करते हैं कि, यह शरीरसहित संपूर्ण जगत् जो प्रतीत होता है सो कुछ नहीं है अर्थात् न सत् है, न असत् है, क्योंकि सब ब्रह्मरूप है, सोई श्रुतिमेंभी कहा है " नेह नानास्ति किञ्चन ” अर्थात् यह संपूर्ण नगत् ब्रह्मरूपही है, आत्मा शुद्ध अर्थात् मायारूपी मलरहित और चित्स्वरूप है, इस कारण किस अधि- ठानमें विश्वकी कल्पना होती है ? ॥ १९॥

शरीरंस्वर्गनरको बन्धमोक्षोभयंतथा।

कल्प-नामात्रमेवैतत्किमेकाचिदात्मनः॥२०॥

अन्वयः-शरीरम् स्वर्गनरको बन्धमोक्षौ तथा भयम् एतत् कल्पनामात्रमेव चिदात्मनः मे एतैः किम् कार्यम् ॥ २० ॥

शिष्य शंका करता है कि, हे गुरो! यदि संपूर्ण प्रपंच मिथ्या है, तब तो ब्राह्मणादि वर्ण और मनुष्यादि जातिभी अवास्तविक होंगे और वर्णजातिके अर्थ प्रवृत्त होनेवाले विधिनिषेध शास्त्रभी अवास्तविक होंगे, और विधिनिषेध शास्त्रोंके विषे वर्णन किये हुए स्वर्ग नरक तथा स्वर्गके विषेप्रीति और नरकका भयभी अवास्त- विक हो जायगे और शास्त्रोंके विषं वर्णन किये हुए बंध मोक्षभी अवास्तविक अर्थात् मिथ्या हो जायँगे ? तिस- का गुरु समाधान करते हैं कि, हे शिष्य ! तेने जो शंका की सो शरीर, स्वर्ग, नरक, बंध, मोक्ष तथा भय आदि