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भाषाटीकासहिता। ६९

चाहिये, इत्यादि अभिनिवेश और सुखदुःख, शीत, उष्ण आदि द्वंद्र किसीके कभी शांत हुए हैं ? अर्थात् कभी किसीके निवृत्त नहीं हुए. इस प्रकार जानकर इन कृत अकृत और सुखदुःखादिके विषं विरक्ति होनेसे त्यागपरायण और संपूर्ण पदार्थोंके विषे आग्रहका त्यागनेवाला हो ॥१॥

कस्यापि तात धन्यस्य लोकचेष्टावलो-कनात् ।

जीवितेच्छा बुभुक्षा च बुभुत्सो-पशमं गताः ॥२॥

अन्वयः-हे तात ! लोकचेष्टावलोकनात् कस्य अपि धन्यस्य जीवितेच्छा बुभुक्षा बुभुत्सा च उपशमम् गताः ॥२॥

चित्तके धर्मोंका त्यागरूप वैराग्य तो किसीकोही होता है, सबको नहीं, यह वर्णन करते हैं, हे शिष्य ! सहस्रोंमेंसे किसी एक धन्य पुरुषकीही संसारकी उत्पत्ति और नाशरूप चेष्टाके देखनेसे जीवनकी इच्छा और भोगकी इच्छा तथा जाननेकी इच्छा निवृत्त होती है।॥२॥

अनित्यं सर्वमेवेदं तापत्रितयदूषितम् ।

असारंनिन्दितंहेयमितिनिश्चित्यशाम्यति ३

अन्वयः-तापत्रितयदूषितम् इदम् सर्वम् एव अनित्यम् असारम् निन्दितम् हेयम् इति निश्चित्य ( ज्ञानी) शाम्यति ॥३॥